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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
में अवस्थित रहे वह समाधि है और जिस कार्य से चित्त में अप्रशस्त एवं अशान्त भाव हों, ज्ञान दर्शन चारित्र आदि मोक्षमार्ग से आत्मा भ्रष्ट हो वह असमाधि है । असमाधि के बीस प्रकार हैं। जैसे-जल्दी-जल्दी चलना, बिना पूंजे रात्रि में चलना, बिना उपयोग सब दैहिक कार्य करना, गुरुजनों का अपमान, निन्दा आदि करना। इन कार्यों के आचरण से स्वयं व अन्य जीवों को असमाधिभाव उत्पन्न होता है । साधक की आत्मा दूषित होती है। उसका पवित्र चरित्र मलिन होता है। अतः उसे असमाधिस्थान कहा है ।"
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द्वितीय उद्देशक में २१ शबल दोषों का वर्णन किया गया है; जिन कार्यों के करने से चारित्र की निर्मलता नष्ट हो जाती है । चारित्र •मल क्लिन्न होने से वह कर्बुर हो जाता है । इसलिए उन्हें शबलदोष कहते हैं ।" 'शबलं कर्बुरं चित्रम्' शबल का अर्थ चित्रवर्णा है । हस्तमैथुन, स्त्री-स्पर्श आदि, रात्रि में भोजन लेना और करना, आधाकर्मी, औद्देशिक आहार का लेना, प्रत्याख्यानभंग, मायास्थान का सेवन करना आदि-आदि ये सब शबल दोष हैं। उत्तरगुणों में अतिक्रमादि चार दोषों का एवं मूलगुणों में अनाचार के अतिरिक्त तीन दोषों का सेवन करने से चारित्रशबल होता है।
तीसरे उद्देशक में ३३ प्रकार की आशातनाओं का वर्णन है। जैनाचार्यों ने आशातना शब्द की निरुक्ति अत्यन्त सुन्दर की है। सम्यग्दर्शनादि आध्यात्मिक गुणों की प्राप्ति को आय कहते हैं और शातना का अर्थ खण्डन है। सद्गुरुदेव आदि महान् पुरुषों का अपमान करने से सम्यग्दर्शनादि सद्गुणों की आशातना - खण्डना होती है ।
१ समाधानं समाधिः चेतसः स्वास्थ्यं, मोक्षमार्गेऽवस्थितिरित्यर्थः न समाधिरसमाधिस्तस्य स्थानानि आश्रया भेदा: पर्याया असमाधि स्थानानि ।
- आचार्य हरिभद्र २ शबलं - कर्बुरं चारित्रं यः क्रियाविशेषैर्भवति ते शबलास्तद्योगात्साधवोऽपि । - अभयदेवकृत समवायांगटीका ३ आयः सम्यग्दर्शनाद्यवाप्ति लक्षणस्तस्य शातना - खण्डना निरुक्तादाशातना । - आचार्य अभयदेवकृत समवायांगटीका 'Taraणा णामं नागादि आयस्स सातणा । यकार लोपं कृत्वा आशातना भवति । - आचार्य जिनवास आवश्यकचूर्णि