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________________ १. दशाश्रुतस्कन्ध छेदसूत्रों में जैन श्रमणों की आचार-संहिता पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। इस सम्पूर्ण विवेचन को उत्सर्ग, अपवाद, दोष और प्रायश्चित्त इन चार वर्गों में विभक्त कर सकते हैं। उत्सर्ग का अर्थ है किसी विषय का सामान्य विधान। अपवाद का अर्थ है .....परिस्थिति विशेष की दृष्टि से विशेष विधान । दोष का अर्थ है-उत्सर्ग और अपवाद मार्ग का भंग । और प्रायश्चित्त का अर्थ है-व्रत भंग होने पर समुचित दंड लेकर उसका शुद्धीकरण करना। किसी भी विधान के लिए ये चार बातें आवश्यक हैं । सर्वप्रथम नियम का निर्माण होता है। उसके पश्चात् देश, काल, परिस्थिति को संलक्ष्य में रखकर किंचित् छूट दी जाती है। परिस्थिति विशेष के लिए अपवाद व्यवस्था होती है। जिन दोषों के लगने की सम्भावना होती है उनकी सूची भी छेदसूत्रों में दी गई है। इसका उद्देश्य है कि उन दोषों से बचा जा सके। यदि साधक उन दोषों का सेवन करता है तो उसके लिए प्रायश्चित्त का विधान है। प्रायश्चित्त से पुराने दोषों की शुद्धि होती है और नवीन दोष न लगें इसके लिए साधक सावधान होता है। जिस प्रकार छेदसूत्रों में वर्णन है वैसे ही बौद्ध भिक्षुओं के आचारविचार का वर्णन विनयपिटक में है । इसके साथ छेदसूत्रों की सहज रूप से तुलना हो सकती है। आचारधर्म के गहन रहस्यों एवं विशुद्ध आचारविचार को समझने के लिए छेदसूत्रों का परिज्ञान करना आवश्यक है। . दशाश्रुतस्कन्ध छेदसूत्र है। छेदसूत्र के दो कार्य हैं दोषों से बचाना और प्रमादवश लगे हुए दोषों की शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त का विधान करना। इसमें दोषों से बचने का विधान है। ठाणांग में इसका अपरनाम आचारदशा प्राप्त होता है। दशाश्रुतस्कन्ध में दश अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम दशाश्रुतस्कन्ध है। दशाश्रुतस्कन्ध का १८३० अनुष्टुप श्लोक प्रमाण उपलब्ध पाठ है । २१६ गद्यसूत्र हैं। ५२ पद्यसूत्र हैं। प्रथम उद्देशक में २० असमाधिस्थानों का वर्णन है। जिस सत्कार्य के करने से चित्त में शांति हो, आत्मा ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप मोक्षमार्ग
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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