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बाह्य आगम साहित्य ३४३ का नामादि भेदपूर्वक व्याख्यान किया जाता है। इसमें सूत्र का शुद्ध और स्पष्ट रूप से उच्चारण करने की सूचना दी है।
अनुयोगद्वार का तृतीय द्वार अनुगम है। उसके सूत्रानुगम और नियुक्त्यनुगम ये दो भेद हैं। निर्युक्त्यनुगम के तीन भेद हैं-निक्षेपनियुक्त्यनुगम, उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम, और सूत्रस्परिक नियुक्त्यनुगम | इसमें निक्षेपनिर्युक्त्यनुगम का विवेचन किया जा चुका है। उपोद्घातनिर्युक्त्यनुगम के उद्देश, निर्देश, निर्गम आदि छब्बीस भेद बताये हैं । सूत्रस्पर्शिक नियुक्त्यनुगम का अर्थ है- अस्खलित, अमिलित-— अन्य सूत्रों के पाठों से असंयुक्त प्रतिपूर्ण घोषयुक्त, कण्ठ - ओष्ठ से विप्रमुक्तक तथा गुरुमुख से ग्रहण किये हुए उच्चारण से युक्त सूत्रों के पदों का स्वसिद्धान्त के अनुरूप विवेचन करना ।
अनुयोगद्वार का चौथा द्वार नय है। इसमें नैगम, संग्रह आदि सात मूल नयों का स्वरूप प्रतिपादित किया गया है। नय जैनदर्शन की आधारशिला हैं। नयद्वार के विवेचन के साथ ही चारों प्रकार के अनुयोगद्वार का वर्णन पूर्ण होता है।
इस प्रकार अनुयोगद्वारसूत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण जैन पारिभाषिक शब्द- सिद्धान्तों का विवेचन है। उपक्रम निक्षेप शैली की प्रधानता और साथ ही भेद-प्रभेदों की प्रचुरता होने से यह आगम अन्य आगमों से क्लिष्ट है तथापि जनदर्शन के रहस्य को समझने के लिए यह अतीव उपयोगी है । जैन आगम की प्राचीन चूर्णि टीकाओं के प्रारम्भ के भाग को देखते हुए ज्ञात होता है कि समग्र निरूपण में वही पद्धति अपनाई गई है जो अनुयोगद्वार में है। यह सिर्फ श्वेताम्बरसम्मत जैन आगमों की टीकाओं पर ही नहीं लागू होता वरन् दिगम्बरों ने भी यह पद्धति अपनाई है। इसका प्रमाण दिगम्बर सम्मत षट्खंडागम आदि प्राचीन शास्त्रों की टीका से मिलता है। इससे इसकी प्राचीनता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। अनुयोगद्वार में सांस्कृतिक सामग्री भी प्रचुर मात्रा में है। संगीत के सात स्वर, स्वरस्थान, गायक के लक्षण, ग्राम, मूच्र्छनाएँ, संगीत के गुण और दोष, नवरस, सामुद्रिक लक्षण, १०८ अंगुल के माप वाले, शंखादि चिन्ह वाले, मस, तिल आदि व्यंजन वाले उत्तम पुरुष आदि बताये गये हैं । निमित्त के सम्बन्ध में भी प्रकाश डाला है जैसे आकाश दर्शन और नक्षत्रादि के प्रशस्त होने पर