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________________ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा स्थापनाध्ययन, द्रव्याध्ययन और भावाध्ययन ये चार भेद हैं। अक्षीण के नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार भेद हैं। इन चार में भावाक्षीणता के आगमतः भावाक्षीणता और नोआगमतः भावाक्षीणता ये दो भेद हैं। अक्षीण शब्द के अर्थ को उपयोगपूर्वक जानना आगमतः भावाक्षीणता कहलाती है। जो व्यय करने पर भी किंचित्मात्र भी क्षीण न हो वह आगमतः भावाक्षीणता कहलाती है। जैसे-- एक जगमगाते दीपक से शताघिक दीपक प्रज्ज्वलित किये जा सकते हैं किन्तु उससे दीपक की ज्योति क्षीण नहीं होती वैसे ही आचार्य श्रुत का दान देते हैं। वे स्वयं भी श्रुतज्ञान से दीप्त रहते हैं और दूसरों को भी प्रदीप्त करते हैं। सारांश यह है कि श्रुत का क्षीण न होना भावाक्षीणता है । ३४२ आय के नाम, स्थापनादि चार भेद हैं। ज्ञान, दर्शन और चारित्र का लाभ प्रशस्त आय है। क्रोध, मान, माया, लोभ आदि की प्राप्ति अप्रशस्त आय है। क्षपणा के नाम, स्थापनादि चार भेद हैं । क्षपणा का अर्थ निर्जरा, क्षय है। क्रोधादि का क्षय होना प्रशस्त क्षपणा है। ज्ञानादि का नष्ट होना अप्रशस्त क्षपणा है। ओघनिष्पन्ननिक्षेप के विवेचन के पश्चात् नामनिष्पन्ननिक्षेप का विवेचन करते हुए कहा है-जिस वस्तु का नाम निक्षेप निष्पन्न हो चुका है उसे नामनिष्पन्न निक्षेप कहते हैं, जैसे सामायिक । इसके भी नामादि चार भेद हैं। भावसामायिक का विवेचन विस्तार से किया है और भावसामायिक करने वाले श्रमण का आदर्श प्रस्तुत करते हुए बताया हैजिसकी आत्मा सभी प्रकार से सावद्य व्यापार से निवृत्त होकर मूलगुणरूप संयम, उत्तरगुणरूप नियम तथा तप आदि में लीन है उसी को भावसामायिक का अनुपम लाभ प्राप्त होता है। जो स और स्थावर सभी प्राणियों को आत्मवत् देखता है, उनके प्रति समभाव रखता है वही सामायिक का सच्चा अधिकारी है। जिस प्रकार मुझे दुःख प्रिय नहीं है वैसे ही अन्य प्राणियों को भी दुःख प्रिय नहीं है। ऐसा जानकर जो न किसी अन्य प्राणी का हनन करता है, न करवाता है और न करते हुए की अनुमोदना ही करता है वह श्रमण है, आदि । सूत्रालापक निक्षेप वह है जिसमें 'करेमि भंते सामाइयं' आदि पदों
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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