________________
३३८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
दो प्रकार का है । जीवगुणप्रमाण के तीन भेद - ज्ञानगुणप्रमाण, दर्शनगुणप्रमाण और चारित्रगुणप्रमाण हैं। इनमें से ज्ञानगुणप्रमाण के प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम ये चार भेद हैं। प्रत्यक्ष के इन्द्रियप्रत्यक्ष और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष दो भेद हैं। इन्द्रियप्रत्यक्ष के श्रोत्रेन्द्रिय से स्पर्शेन्द्रिय तक पाँच भेद हैं। नोइन्द्रियप्रत्यक्ष के अवधिज्ञान, मनः पर्यवज्ञान और केवलज्ञान प्रत्यक्ष-ये तीन भेद हैं। 1
अनुमान - पूर्ववत् शेषवत् और दृष्टसाधर्म्यवत् तीन प्रकार का है। पूर्ववत् अनुमान को समझाने के लिये एक रूपक दिया है। जैसे—किसी माता का कोई पुत्र लघुवय में अन्यत्र चला गया और युवक होकर पुनः अपने नगर में आया । उसे देखकर उसकी माता पूर्व लक्षणों से अनुमान करती है कि यह पुत्र मेरा ही है। इसे पूर्ववत् अनुमान कहा है।
शेषवत् अनुमान कार्यतः, कारणतः, गुणतः, अवयवतः और आश्रयतः इस तरह पाँच प्रकार का है। कार्य से कारण का ज्ञान होना कार्यतः अनुमान कहा जाता है । जैसे शंख, भेरी आदि के शब्दों से उनके कारणभूत पदार्थों का ज्ञान होना; यह एक प्रकार का अनुमान है। कारणतः अनुमान वह है जिसमें कारणों से कार्य का ज्ञान होता है जैसे- तंतुओं से पट बनता है, मिट्टी के पिंड से घट बनता है । गुणतः अनुमान वह है जिसमें गुण के ज्ञान से गुणी का ज्ञान किया जाय, जैसे- कसौटी से स्वर्ण की परीक्षा, गंध से फूलों की परीक्षा । अवयवतः अनुमान है अवयवों से अवयवी का ज्ञान होना जैसे-सींगों से महिष का, शिखा से कुक्कुट का, दाँतों से हाथी का आश्रयतः अनुमान वह है जिसमें आश्रय से आश्रयी का ज्ञान होता है। इसमें साधन से साध्य पहचाना जाता है जैसे- धुएँ से अग्नि, बादलों से जल, सदाचरण से कुलीन पुत्र का ज्ञान होता है ।
दृष्टसाधर्म्यवत् अनुमान के सामान्यदृष्ट और विशेषदृष्ट- ये दो भेद हैं। किसी एक व्यक्ति को देखकर तद्देशीय या तज्जातीय अन्य व्यक्तियों की आकृति आदि का अनुमान करना सामान्यदृष्ट अनुमान है। इसी प्रकार अनेक व्यक्तियों की आकृति आदि से एक व्यक्ति की आकृति का अनुमान भी किया जा सकता है। किसी व्यक्ति को पहले एक बार देखा हो, पुनः उसको दूसरे स्थान पर देखकर अच्छी तरह पहचान लेना विशेषदृष्ट अनुमान है।
१ प्रत्यक्षप्रमाण का विस्तृत विवरण नंदीसूत्र के विवेचन में दिया गया है ।