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अंगबाह्य आगम साहित्य ३३६ उपमान प्रमाण के साधोपनीत और वैधोपनीत ये दो भेद हैं। साधोपनीत के किंचित्साधोपनीत, प्रायःसाधोपनीत और सर्वसाधोपनीत ये तीन प्रकार है। जिसमें कुछ साधम्र्य हो वह किंचित् साध
र्योपनीत है उदाहरण के लिए जैसा आदित्य है वैसा खद्योत है क्योंकि दोनों ही प्रकाशित हैं। जैसा चन्द्र है वैसा कुमुद है क्योंकि दोनों में शीतलता है। जिसमें लगभग समानता हो वह प्रायःसाधोपनीत है जैसे-गाय है वैसी नील-गाय है । जिसमें सब प्रकार की समानता हो वह सर्वसाधोपनीत है। यह उपमा देश, काल आदि की भिन्नता के कारण अन्य में नहीं प्राप्त होती। अत: उसकी उसी से उपमा देना सर्वसाधोपनीत उपमान है। इसमें उपमेय और उपमान भिन्न नहीं होते। जैसे-सागर सागर के सदृश है । तीर्थङ्कर तीर्थङ्कर के समान हैं।
वैधोपनीत के किंचितवैधोपनीत, प्रायःवैधोपनीत और सर्ववैधोपनीत-ये तीन प्रकार हैं।
आगम दो प्रकार के हैं-लौकिक और लोकोत्तर । मिथ्यादष्टियों के बनाये हुए ग्रन्थ लौकिक आगम हैं। जिन्हें पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो गया है ऐसे सर्वज्ञ, सर्वदर्शी द्वारा प्रतिपादित द्वादशांग गणिपिटक-यह लोकोत्तर आगम है । अथवा आगम के सूत्रागम, अर्थागम और तदुभयागम अथवा आत्मागम, अनंतरागम और परम्परागम, इस प्रकार तीन भेद हैं। तीर्थर द्वारा कथित अर्थ उनके लिए आत्मागम है। गणधररचित सूत्र गणधर के लिए आत्मागम है और अर्थ उनके लिए परम्परागम है । उसके पश्चात् सूत्र, अर्थ दोनों परम्परागम है । यह ज्ञानगुणप्रमाण का वर्णन है।
दर्शनगुणप्रमाण के चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन गुणप्रमाण ये चार भेद हैं।
चारित्रगुणप्रमाण पाँच प्रकार का है-सामायिकचारित्र, छेदोपस्थापनीय, परिहारविशुद्ध, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यातचारित्र गुणप्रमाण ।
सामायिकचारित्र इत्वरिक और यावत्कथित रूप से दो प्रकार का है। छेदोपस्थापनीयचारित्र भी सातिचार और निरतिचार (सदोष और निर्दोष) ऐसे दो प्रकार का है। इसी तरह परिहारविशुद्ध, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात चारित्र भी क्रमशः निविश्यमान और निविष्टकायिक, प्रतिपाती और अप्रतिपाती, छाद्मस्थिक और केवलिक इस प्रकार दो-दो तरह के हैं।