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________________ ३३६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा प्रमाण के अर्द्धकर्ष, कर्ष, अर्द्धपल, पल, अर्द्धतुला, तुला, अर्द्धभार, भार आदि अनेक भेद हैं। इस प्रमाण से अगर, कुमकुम, खाँड, गुड़ आदि वस्तुओं का प्रमाण मापा जाता है। जिस प्रमाण से भूमि आदि का माप किया जाय वह अवमान है। इसके हाथ, दंड, धनुष्य आदि अनेक प्रकार हैं। गणितमान प्रमाण में संख्या से प्रमाण निकाला जाता है जैसे एक, दो से लेकर हजार, लाख करोड़ आदि जिससे द्रव्य के आय-व्यय का हिसाब लगाया जाय । प्रतिमान -- जिससे स्वर्ण आदि मापा जाय। इसके गुज्जा, कांगणी, निष्पाव, कर्ममाशक, मंडलक, सोनया आदि अनेक भेद हैं। इस प्रकार द्रव्यप्रमाण की चर्चा है। क्षेत्रप्रमाण प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न दो प्रकार का है। एक प्रदेशावगाही, द्वि-प्रदेशावगाही, आदि पुद्गलों से व्याप्त क्षेत्र को प्रदेशfroपन्न क्षेत्रप्रमाण कहा गया है। विभागनिष्पन्न क्षेत्रप्रमाण के अंगुल, वितस्ति, हस्त, कुक्षि, दंड, कोश, योजन आदि नानाविध प्रकार हैं। अंगुल - आत्मांगुल, उत्सेवांगुल और प्रमाणांगुल के रूप में तीन प्रकार का है। जिस काल में जो मानव होते हैं उनके अपने अंगुल से १२ अंगुल प्रमाणमुख होता है । १०८ अंगुल प्रमाण पूरा शरीर होता है। वे पुरुष उत्तम, मध्यम और जघन्य रूप से ३ प्रकार के हैं। जिन पुरुषों में पूर्ण लक्षण हैं और १०८ अंगुल प्रमाण जिनका शरीर है वे उत्तम पुरुष हैं, जिन पुरुषों का शरीर १०४ अंगुल प्रमाण है वे मध्यम पुरुष हैं और जिनका शरीर ह६ अंगुल प्रमाण है वे जघन्य पुरुष हैं। इन अंगुलों के प्रमाण से छह अंगुल का १ पाद, २ पाद की १ वितस्ति, २ वितस्ति का १ हाथ, २ हाथ की १ कुक्षि, २ कुक्षि का १ धनुष्य, दो हजार घनुष्य का १ कोश, ४ कोश का १ योजन होता है। प्रस्तुत प्रमाण से आराम, उद्यान, कानन, वन, वनखंड, कुआ, वापिका, नदी, खाई, प्राकार, स्तूप आदि नापे जाते हैं । उत्सेधांगुल का प्रमाण बताते हुए परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु का वर्णन विविध प्रकार से किया है। प्रकाश में जो धूलिकण आँखों से दिखाई देते हैं वे सरेणु हैं। रथ के चलने से जो धूलि उड़ती है वह रथरेणु है । परमाणु का दो दृष्टियों से प्रतिपादन है— सूक्ष्म परमाणु और व्यावहारिक परमाणु । अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के मिलने से एक व्यावहारिक परमाणु बनता है । व्यावहारिक परमाणुओं की क्रमशः वृद्धि होते-होते मानवों का बालाग्र, लीख, जूं, यव और अंगुल बनता है जो क्रमशः आठ गुने अधिक
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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