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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य ३३५ वह एकाक्षरिकनाम है। जैसे धी, स्त्री, ह्री इत्यादि। जिसके उच्चारण में अनेक अक्षर हों वह अनेकाक्षरिक नाम हैं, जैसे-कन्या, वीणा, लता, माला इत्यादि । अथवा जीवनाम, अजीवनाम, अथवा अविशेषिकनाम, विशेषिकनाम, इस तरह दो प्रकार का है। इसका विस्तार से विवेचन किया गया है। त्रिनाम के द्रव्यनाम, गुणनाम और पर्यायनाम ये तीन प्रकार हैं। द्रव्यनाम के धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय (काल) ये छह भेद हैं। गुणनाम के वर्णनाम, गंधनाम, रसनाम, स्पर्शनाम और संस्थाननाम आदि अनेक भेदप्रभेद हैं। पर्यायनाम के एकगुणकृष्ण, द्विगुणकृष्ण, त्रिगुणकृष्ण यावत् दसगुण, संख्येयगुण, असंख्येयगुण और अनन्तगुणकृष्ण इत्यादि अनेक प्रकार हैं। चतुर्नाम ४ प्रकार का है-आगमत:, लोपतः, प्रकृतितः और विकारतः । विभक्त्यन्त पद में वर्ण का आगम होने से पद्म का पद्मानि। यह आगमतः पद का उदाहरण है। वर्गों के लोप से जो पद बनता है वह लोपतः पद है; जैसे---पटोऽत्र-पटोत्र । संधिकार्य प्राप्त होने पर भी संधि का न होना प्रकृतिभाव कहलाता है । जैसे शाले एते माले इमे । विकारत: पद के उदाहरणदंडाग्रः, नदीह, मधूदकम् । पञ्चनाम पांच प्रकार का है...--नामिक, नैपातिक, आख्यातिक, उपसर्गिक और मिश्र । षष्ठनाम औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सन्निपातिक-छह प्रकार का है। इन भावों पर कर्मसिद्धान्त व गुणस्थानों की दृष्टि से विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। इसके पश्चात् सप्तनाम में सप्त स्वर पर, अष्टनाम में अष्ट विभक्ति पर, नवनाम में नव रस एवं दसनाम में गुणवाचक दस नाम बताये हैं। उपक्रम के तृतीय भेद प्रमाण पर चिन्तन करते हुए द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण और भावप्रमाण के रूप में चार भेद किये गये हैं। द्रव्यप्रमाण प्रदेशनिष्पन्न और विभागनिष्पन्न रूप से दो प्रकार का है। प्रदेशनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण के अन्तर्गत परमाण, द्विप्रदेशी स्कन्ध यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध आदि हैं। विभागनिष्पन्न द्रव्यप्रमाण के मान, उन्मान, अबमान, गणितमान और प्रतिमान ये पांच प्रकार हैं। इनमें से मान के दो प्रकार हैं.-.--धान्यमानप्रमाण, रसमानप्रमाण। धान्यमानप्रमाण के प्रसति, सेधिका, कुडब, प्रस्थ, आढक, द्रोणि, जघन्य मध्यम उत्कृष्ट कुम्भ आदि अनेक भेद हैं। इसी प्रकार रसमानप्रमाण के भी विविध भेद हैं। उन्मान
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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