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________________ ३२६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य श्रुत का पूर्व पृष्ठों में परिचय दिया जा चुका है। अन्त में श्रुतज्ञान का उपसंहार करते हुए शास्त्रकार बताते हैं कि श्रुतज्ञान का सही ज्ञान उस साधक को होगा जो शुश्रूषा (श्रवणेच्छा), प्रतिपृच्छा, श्रवण, ग्रहण, ईहा, अपोह, धारणा और आचरण इन आठ गुणों से युक्त होगा। नन्दीसूत्र का आगम साहित्य में गहरा महत्त्व रहा है क्योंकि इसमें भावमंगल रूप पाँच ज्ञानों का वर्णन है। आगम अथवा श्रुत भी पाँच ज्ञानों में से एक ज्ञान है। इसलिए नन्दी का सम्बन्ध दूसरे आगमों से स्वतः जुड़ जाता है, अतः शास्त्रों की व्याख्या या वाचना का प्रारम्भ नन्दी से किया जाता था, ऐसा उल्लेख मिलता है। नन्दीसूत्र के तीन संस्करण प्राप्त होते हैं। प्रथम देववाचक नन्दीसूत्र, दूसरा लधुनन्दी जिसे अनुज्ञानन्दी भी कहते हैं और तीसरा योगनन्दी। देववाचक विरचित नन्दीसूत्र का ऊपर की पंक्तियों में परिचय दिया जा चुका है । लघुनन्दी जिसे अनुज्ञानन्दी कहते हैं, उसमें अनुज्ञा शब्द का अर्थ आज्ञा है। इस पाठ का उपयोग आचार्य जब अपने शिष्य को गणधारण करने की या आचार्य बनने की आज्ञा देते हैं उस समय मंगलरूप होने से करते हैं, इसलिए इसे अनुज्ञानन्दी यह सार्थक नाम दिया गया है। अनेक कल्पों में एक कल्प अनुज्ञाकल्प भी है उसका विशेष परिचय पंचकल्प भाष्य और चूणि में दिया गया है।' योगनंदी में नंदी का संक्षिप्त सार प्रस्तुत किया गया है। उसमें ज्ञान के आभिनिबोधिक आदि पांच प्रकार बताये हैं। उनमें से केवल श्रुतज्ञान के उद्देशादि होते हैं अर्थात् श्रुतज्ञान का अध्ययन-अध्यापन हो सकता है और श्रुत में भी अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य के ही उद्देशक होते हैं। अतः प्रस्तुत योगनंदी में पांच ज्ञान के नाम बताकर श्रुत में १२ आचारश्रुतादि अंग और अंगबाह्य में कालिक के अन्तर्गत उत्तराध्ययनादि ३९ और उत्कालिक के अन्तर्गत दशवकालिकादि ३१, आवश्यकव्यतिरिक्त और सामायिकादि छह आवश्यक सूत्र का समावेश किया है। इसमें योग शब्द प्रारम्भ में १ विशेष जिज्ञासु देखें-नन्दीसुत्तं अणुओगद्दाराई की पुण्यविजयजी महाराज की प्रस्तावना, महावीर जैन विद्यालय से प्रकाशित ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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