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________________ ३. नंदीसूत्र नंदी और अनुयोगद्वार ये दोनों आगम चूलिकासूत्र के नाम से पहचाने जाते हैं। चूलिका शब्द का प्रयोग उन अध्ययनों या ग्रन्थों के लिए होता है जिसमें अवशिष्ट विषयों का वर्णन या वणित विषयों का स्पष्टीकरण किया गया हो। दशवकालिक और महानिशीथ के अन्त में भी चूलिकाएँ-चूलाएँ-चूड़ाएँ प्राप्त होती हैं। चूलिकाओं को वर्तमान युग की भाषा में ग्रन्थ का परिशिष्ट कह सकते हैं। नन्दी और अनुयोगद्वार भी आगम साहित्य के अध्ययन के लिए परिशिष्ट का कार्य करते हैं। नंदीसूत्र में पांच ज्ञानों का विस्तार से निरूपण है। नियुक्तिकार ने नंदी शब्द को ज्ञान का पर्यायवाची माना है। नंदीसूत्र की रचना गद्य और पद्य दोनों में हुई है। इसमें एक अध्ययन है, ७०० श्लोक परिमाण मूलपाठ है । ५७ गद्यसूत्र हैं और ६७ पद्य-गाथाएँ हैं। सर्वप्रथम सूत्रकार ने भगवान महावीर को नमस्कार किया है । उसके पश्चात् जैन संघ, २४ तीर्थंकर, ११ गणधर, जिन-प्रवचन, सुधर्मा आदि स्थविरों को स्तुतिपूर्वक नमस्कार किया है। इसमें जो स्थविरावली-गुरुशिष्य परंपरा-प्रस्तुत की गई है वह कल्पसूत्र की स्थविरावली से भिन्न है। प्रस्तुत आगम में श्रमण भगवान महावीर के पश्चात् की स्थविरावली इस प्रकार है १. सुधर्मा, २. जम्बू, ३. प्रभव, ४. शय्यंभव, ५. यशोभद्र, ६. सम्भूतविजय, ७. भद्रबाहु, ८. स्थूलभद्र, ६. महागिरि, १०. सुहस्ति, ११. बलिस्सह, १२. स्वाति, १३. श्यामार्य, १४. शाण्डिल्य, १५. समुद्र, १६. मंगू, १७. धर्म, १८. भद्रगुप्त, १९. वज्र, २०. रक्षित, २१. नन्दिल (आनन्दिल) २२. नागहस्ती, २३. रेवतीनक्षत्र, २४. ब्रह्मदीपकसिंह, २५. स्कन्दिलाचार्य, २६. हिमवंत २७. नागार्जुन, २८. श्रीगोविन्द, २६. श्रीभूतदिन्न, ३०. लौहित्य, ३१. दूष्यगणी। कल्पसूत्र की स्थविरावली इस प्रकार है :१. सुधर्मा, २. जम्बू, ३. प्रभव, ४. शय्यम्भव, ५. यशोभद्र, ६. संभूति
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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