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________________ ३१८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा विजय, ७. स्थूलभद्र, ८. सुहस्ती, ६. सुस्थितसुप्रतिबुद्ध, १०. इन्द्रदिन्न, ११. दिन्न, १२. सिंहगिरि, १३. वज्र १४. श्रीन्थ, १५. पुष्यगिरि, १६. फल्गुमित्र, १७. धनगिरि, १८. शिवभूति, १६. भद्र, F०. नक्षत्र, २१. रक्ष, २२. नाग, २३. जेहिल, २४. विष्णु, २५. कालक, २६. सम्पलितभद्र, २७. वृद्ध, २८. संघपालित, २६. श्रीहस्ती, ३०. धर्म, ३१. मिह ३२. धर्म, ३३. शाण्डिल्य, ३४. देवद्धिगणी। मंगलाचरण में शास्त्रकार ने संघ को नगर, चक्र, रथ, कमल, चन्द्र, सूर्य, समुद्र और मेरु की उपमा दी है, जो संघ के महत्व को प्रदीप्त करती है। उसके पश्चात् अर्थग्रहण की योग्यता रखने वाले श्रोताओं का निम्न १४ दृष्टान्तों से वर्णन किया है-- १. शैल और घन, २. कुटक अर्थात् घड़ा, ३. चालनी, ४. परिपूर्णक, ५. हंस, ६. महिष, ७. मेष, ८. मशक, जलौका, १०. बिडाली, ११. जाहक १२. गो, १३. भेरी, १४. आभीरी। इन रूपकों पर टीकाकार ने विस्तार से प्रकाश डाला है। श्रोताओं के समूह को सभा कहते हैं। वह सभा कायिका, अज्ञायिका और दुर्विदग्धा के रूप में तीन प्रकार की है। जैसे हंस पानी का परित्याग कर दूध को पीता है वैसे ही गुणसंपन्न पुरुष दोषों को छोड़कर गुणों को ग्रहण करता है। ऐसे पुरुषों की सभा को ज्ञायिका कहा गया है। जो श्रोता मृग, सिंह, कुक्कुट के बच्चों के सदृश मधुर प्रकृति के होते तथा असंस्कारित रत्नों के सदृश किसी भी रूप में ढाले जा सकते हैं वे अज्ञायिक हैं और ऐसे श्रोताओं की सभा अज्ञायिका कहलाती है। जो व्यकि स्वयं तो ज्ञाता नहीं है पर अपने आपको बहुत बड़ा ज्ञानी मानता है और मूर्ख व्यक्तियों से अपनी मिथ्या प्रशंसा सुनकर वायु से भरी हुई मशक के समान फूला नहीं समाता वह व्यक्ति दुर्विदग्ध है, ऐसे व्यक्तियों की सभा दुर्विदग्धा सभा कहलाती है। नंदीसूत्र अंगबाह्य आगम है। इसमें जो ज्ञान के संबंध में विस्तार से विश्लेषण किया गया है उसका मूलनीत स्थानांग, समवायांग, भगवती, राजप्रश्नीय, उत्तराध्ययन आदि हैं। उनमें संक्षेप में पाँच ज्ञानों का निरूपण है किन्तु नंदी में ज्ञानवाद पूर्ण रूप से विकसित है। संक्षेप में हम नंदी के ज्ञान विवेचन को इस प्रकार दे सकते
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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