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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य ३१५ दारुण एवं कठोर स्पर्श को शरीर द्वारा सहन करे । क्षुधा पिपासा आदि को अदीनभाव से सहन करे क्योंकि देह दुःख को समभाव से सहन करने का महाफल कहा गया है। जब तक बुढ़ापा पीड़ा नहीं देता, व्याधियाँ कष्ट नहीं पहुँचातीं, इन्द्रियां क्षीण नहीं हो जाती तब तक धर्म का आचरण कर ले । कोष प्रीति का नाश करता है, मान विनय को नष्ट करता है, माया मित्रों का नाश करती है और लोभ सर्वगुणों का नाश करने वाला है । क्रोध को उपशमन से, मान को मृदुता से, माया को ऋजुता से और लोभ को संतोष से जीतना चाहिये । श्रमण को बिना पूछे नहीं बोलना चाहिए। किसी के वार्तालाप के समय बीच में न बोले, चुगली न करे और कपटपूर्ण असत्य न बोले । नवें अध्ययन का नाम 'विनयसमाधि' है। इसके चार उद्देशक हैं। जैनागमों में विनय शब्द का प्रयोग आचार व उसकी विविध धाराओं के अर्थ में हुआ है । विनय का अर्थ केवल नम्रता ही नहीं, अपितु आचार है । विनय की प्रमुख धाराऐं दो हैं- अनुशासन और नम्रता । बौद्ध साहित्य में भी व्यवस्था, विधि व अनुशासन के अर्थ में विनय शब्द व्यवहृत हुआ है। प्रथम उद्देशक में आचार्य के साथ शिष्य का वर्तन कैसा होना चाहिये इसका निरूपण है। 'अनंतनाणोवगओ वि संतो' शिष्य अनन्तज्ञानी भी हो जाय तो भी वह आचार्य की आराधना उसी प्रकार करता रहे जैसे वह पहले करता रहा हो। जिसके पास धर्मपद सीखता है उसके प्रति विनय का प्रयोग करे । मन, वाणी और शरीर से नम्र रहे। आशीविष सर्प क्रुद्ध हो जाय तो प्राणों के नाश से अधिक कुछ नहीं कर सकता किन्तु आचार्य अप्रसन्न हो जाय तो अबोधि के कारण जीव को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती । जो गुरुओं की आशातना करता है वह उस व्यक्ति के समान है जो अग्नि को अपने पैरों से कुचलकर बुझाना चाहता है, या आशीविष सर्प को क्रुद्ध करता है या जीने की कामना से हलाहल विष का पान करता है । दूसरे उद्देशक में अविनय और विनय का भेद बताया है। अविनीत विपत्ति में पड़ता है और विनीत सम्पत्ति को प्राप्त करता है। अविनीत संविभागी होता है । जो संविभागी नहीं है वह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता । जो आचार्य और उपाध्याय की सेवा शुश्रूषा करता है उसकी शिक्षा जल से सिंचे हुए वृक्ष की भांति बढ़ती जाती है।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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