________________
अंगबाह्य आगम साहित्य ३११ में वे श्रमण बने थे अतः दशवकालिक का रचनाकाल वीर नि० सं०७२ के आसपास है । उस समय प्रभवस्वामी विद्यमान थे।'
डा० विन्टरनित्ज ने वीर नि० के ४८ वर्ष बाद दशवैकालिक का रचनाकाल माना है। और प्रो० एम० बी० पटवर्धन का भी यही अभिमत है। किन्तु पट्टावलियों के कालनिर्णय से उनका कथन मेल नहीं खाता। विषयवस्तु
दशवकालिक के दश अध्ययन हैं। उनमें पांचवें अध्ययन के २ और नवें के ४ उद्देशक हैं। शेष अध्ययनों के उद्देशक नहीं है। चौथा व नवा अध्ययन गद्य-पद्यात्मक है। शेष सभी अध्ययन पद्यात्मक है। टीकाकार ने दशवकालिक के पद्यों की संख्या ५०६ और चूलिकाओं की ३४ बताई है। चूर्णिकार ने पद्य ५३६ और चूलिकाएं ३३ बताई हैं।
दशवकालिक का प्रथम अध्ययन 'द्रुमपुष्पिका' है। धर्म क्या है-यह चिरचिन्त्य प्रश्न रहा है। उसका समाधान है-जो आत्मा का उत्कृष्ट हित साधता हो वह धर्म है। जिसमें अहिंसा, संयम और तप हो वही मंगल है। अहिंसक श्रमण को आहार कैसे ग्रहण करना चाहिये इसके लिए मधुकर का रूपक देकर बताया कि जिस प्रकार मधुकर पुष्पों से स्वभावसिद्ध रस ग्रहण करता है वैसे ही श्रमणों को गृहस्थों के घरों से जहाँ आहार, जल आदि स्वाभाविक रूप से बनते हैं प्रासुक आहार को ग्रहण करना चाहिए। मधुकर फूलों को म्लान किये बिना थोड़ा-थोड़ा रस पीता है वैसे श्रमण भी थोड़ा-थोड़ा ही ग्रहण करे। मधुकर उतना ही मधु ग्रहण करता है जितना उदरपूर्ति के लिए आवश्यक है। वह दूसरे दिन के लिए संग्रह नहीं करता वैसे ही श्रमण भी संयम-निर्वाह के लिए आवश्यक हो उतना ही ग्रहण करे, संचय न करे। मधुकर किसी एक वृक्ष या फूल से ही रस ग्रहण नहीं करता अपितु विविध फूलों से ग्रहण करता है। वैसे ही श्रमण भी किसी गांव, घर या व्यक्ति पर आश्रित न होकर सामुदायिक रूप से आहार ग्रहण करे । इस प्रकार इस अध्ययन में अहिंसा और उसके प्रयोग का निर्देश किया गया है।
१ दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ०१६-१७ २ A History of Indian Literature, Vol. II, Page 47, F.N. 1. ३ The Dasavaikalika Sutra: A Study, Page 9.