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________________ ३१. जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा कारण यह भी हो सकता है कि इसका दसवाँ अध्ययन बैतालिक नाम के वृत्त में रचा हुआ है। अतः इसका नाम दसवैतालियं हो सकता है।' । हम बता चुके हैं कि आचार्य शय्यंभव ने मनक के लिए दशवकालिक का निर्माण किया। उसने छह मास में दशवकालिक को पढ़ा और वह समाधिपूर्वक संसार से चल बसा । आचार्य को इस बात की प्रसन्नता थी कि उसने श्रुत और चारित्र की सम्यक् आराधना की अतः उनकी आँखों से आनन्द के आँसू छलक पड़े। उनके प्रधान शिष्य यशोभद्र ने इसका कारण पूछा । आचार्य ने कहा-'मनक मेरा संसारपक्षी पुत्र था इसलिए कुछ स्नेहभाव जाग्रत हुआ। वह आराधक हुआ यह प्रसन्नता का विषय है। मैंने उसकी आराधना के लिए इस आगम का निर्यहण किया है। अब इसका क्या किया जाय?' संघ ने चिन्तन के पश्चात् यह निर्णय किया कि इसे यथावत् रखा जाय। यह मनक जैसे अनेक श्रमणों की आराधना का निमित्त बनेगा। इसलिए इसका विच्छेद न किया जाय। प्रस्तुत निर्णय के पश्चात् दशवकालिक का जो वर्तमान में रूप है उसे अध्ययन क्रम से संकलित किया गया है। महानिशीथ के अभिमतानुसार पांचवें आरे के अन्त में पूर्णरूप से अंगसाहित्य विच्छिन्न हो जायगा तब दुप्पसह मुनि दशवकालिक के आधार पर संयम की साधना करेंगे और अपने जीवन को पवित्र बनायेंगे। दशवकालिक का रचनाकाल भगवान महावीर के पश्चात् सुधर्मास्वामी और उनके उत्तराधिकारी जम्बूस्वामी थे। तीसरे आचार्य प्रभवस्वामी हुए। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के सम्बन्ध में सोचा किन्तु कोई भी शिष्य आचार्य पद के योग्य नहीं था, फिर गृहस्थों की ओर ध्यान दिया। उन्हें राजगृह में शय्यंभव ब्राह्मण, जो उस समय यज्ञ कर रहा था, योग्य प्रतीत हुआ। आचार्य राजगृह आये। शय्यंभव के पास साधुओं को भेजा। उनकी प्रेरणा से वे आचार्य के पास आये, सम्बुद्ध हुए और प्रव्रज्या ग्रहण की। २८ वर्ष की उम्र १ दशवकालिक : अगस्त्यसिंह चूणि, पुण्यविजयजी महाराज द्वारा सम्पादित २ आणंदअंसुपायं कासी सिज्जभवा तहि थेरा। जसमद्दस्स य पुच्छा कहणा अ विआलणा संघे ।।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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