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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य ३०६ विषय स्थानांग ८५६८,६०६,६१५ और आचारांग व सूत्रकृतांग से भी आंशिक तुलना हो सकती है। आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध की पहली चूला १ व ४ अध्ययन से क्रमशः ५वें और ७वें अध्ययन की तुलना की जा सकती है। दशवकालिक के २, ९ व १०वें अध्ययन के विषय की उत्तराध्ययन के १ और १५वें अध्ययन से तुलना कर सकते हैं।२ दिगम्बर परम्परा में दशवकालिक का उल्लेख धवला, जयधवला, तत्त्वार्थराजवार्तिक, तत्त्वार्थश्रुतसागरीयावृत्ति प्रभृति अनेक स्थलों में हुआ है और 'आरातीयैराचार्य नि! ढं' केवल इतना संकेत प्राप्त होता है। यह सूत्र कब तक मान्य रहा इसका संकेत नहीं मिलता। प्रस्तुत आगम के दसवेयालियः (दशवकालिक) और दसवेकालिय' ये दो नाम मिलते हैं। यह नाम दस और वैकालिक अथवा कालिक इन दो पदों से निर्मित है। 'दस' शब्द अध्ययनों की संख्या की सूचना करता है और इसकी रचना विकाल बेला में हुई अतः इसे वैकालिक कहा गया है। सामान्य नियम के अनुसार आगम का रचनाकाल पूर्वाह्न माना जाता है किन्तु आचार्य शय्यंभव ने मनक की अल्पाय को देखकर उसी क्षण अपराह्न में ही इसका उद्धरण प्रारम्भ किया और उसे विकाल में पूर्ण किया। स्वाध्याय का काल दिन और रात में प्रथम और अन्तिम प्रहर है। प्रस्तुत आगम बिना काल (विकाल) में भी पढ़ा जा सकता है अत: इसका नाम दशवकालिक रखा गया है। यह चतुर्दशपूर्वी से आया है, जिन्होंने काल को लक्ष्य कर इसका निर्माण किया। इसलिए इसका नाम दशवकालिक रखा गया है। एक १ (क) दशवकालिक अ० ४,सूत्र : मिलाइये--आचारांग १४१०६।४६ (ख) दशवकालिक ५२।२८ : मिलाइये-आचारांग १।१।२।४ (ग) दशवकालिक ६३५३ : मिलाइये-सूत्रकृतांग ११२।२।१८ .२ 'दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि' की भूमिका, पृ० १२ (आचार्य तुलसी) ३ (क) नन्दीसूत्र ४६ (ख) दशवकालिकनियुक्ति गाथा ६ ४ दशकालिकनियुक्ति गाथा १, ७, १२, १४, १५ ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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