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३०८ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा पांचवें अध्ययन को जानने व पढ़ने वाला पिंडकल्पी होने लगा। ये वर्णन दशवकालिक के महत्व को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं।'
प्रस्तुत आगम के कर्ता शय्यंभव माने जाते हैं। यह रचना स्वतन्त्र नहीं किन्तु निर्यढ है। आचार्य शय्यंभव ने विभिन्न पूर्वो से इसका निर्यहण किया है। दशवकालिकनियुक्ति की दृष्टि से चतुर्थ अध्ययन आत्मप्रवाद पूर्व से, पंचम अध्ययन कर्मप्रवाद पूर्व से, सप्तम अध्ययन सत्यप्रवादपूर्व से
और अवशेष सभी अध्ययन प्रत्याख्यानपूर्व की तृतीय वस्तु से उद्धत किये गये हैं।
दूसरा मन्तव्य यह भी है कि दशवैकालिक का निर्यहण गणिपिटक द्वादशांगी से किया गया है। यह निर्यहण किस अध्ययन का किस अंग से किया गया उसका स्पष्ट निर्देश नहीं है तथापि विज्ञों ने अनुमान लगाया है कि तृतीय अध्ययन का विषय सूत्रकृतांग १९ से मिलता है। चतुर्थ अध्ययन का विषय सूत्रकृतांग १११११७,८ और आचारांग १।११ का कहीं पर संक्षेप और कहीं पर विस्तार है। पांचवें अध्ययन का विषय आचारांग के द्वितीय अध्ययन लोकविजय के पांचवें उद्देशक और आठवें विमोह अध्ययन के दुसरे उद्देशक से मिलता-जुलता है। छठा अध्ययन समवायांग १८वें समवाय के 'वयछक्कं कायछक्कं अकप्पो गिहिभायणं । पलियंक निसिज्जा य, सिणाणं सोभवज्जणं' गाथा का विस्तार से निरूपण है। सातवें अध्ययन का मूल स्रोत आचारांग २१।६।५ में प्राप्त होता है। आठवें अध्ययन का कुछ
बितितमि बंभचेरे पंचम उद्देसे आमगंधम्मि । सुत्तमि पिंडकप्पो इह पुण पिंडेसणाएओ।
-व्यवहारभाष्य, उ०३, गा०१७५ आयप्पवायपुवा निज्जूढा होइ धम्मपन्नत्ती। कम्मप्पवायपुव्वा पिंडस्स उ एसणा तिविहा ।। सच्चप्पवाय पुवा निज्जूढा होइ वक्क सुद्धी उ । अवसेसा निज्जूढा नवमस्स उ तइयवत्थूओ ॥
-दशवकालिकनियुक्ति, गाथा १६-१७ ३ बीओऽवि अ आएसो गणिपिडगाओ दुवालसंगाओ।
एवं किर निज्जूढं मणगस्स अणुग्गहट्ठाए ।