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________________ जैन आगम साहित्य : एक अनुशीलन ५ आगम की परिभाषा आगम शब्द-'आ' उपसर्ग और 'गम्' धातु से निष्पन्न हुआ है। 'आ' उपसर्ग का अर्थ समन्तात् अर्थात् पूर्ण है और 'गम्' धातु का अर्थ गति-प्राप्ति है। . आगम शब्द की अनेक परिभाषाएँ आचार्यों ने की हैं। जिससे वस्तुतत्त्व (पदार्थ-रहस्य) का परिपूर्ण ज्ञान हो, वह आगम है"; "जिससे पदार्थों का यथार्थ ज्ञान हो, वह आगम है'२ "जिससे पदार्थों का परिपूर्णता के साथ मर्यादित ज्ञान हो, वह आगम हैं। 'जो तत्त्व आचार परम्परा से वासित होकर आता है, वह आगम है'। 'आप्त वचन से उत्पन्न अर्थ (पदार्थ) ज्ञान आगम कहा जाता है। उपचार से आप्त वचन भी आगम माना जाता है।'५ 'आप्त का कथन आगम है' 14 "जिससे सही शिक्षा प्राप्त होती है, विशेष ज्ञान उपलब्ध होता है वह शास्त्र आगम या श्रुतज्ञान कहलाता है। इस प्रकार आगम शब्द समन श्रुति का परिचायक है, पर जैनदृष्टि से वह विशेष ग्रन्थों के लिए व्यवहृत होता है। . जैन दृष्टि से आप्त कौन है ? प्रस्तुत प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि जिन्होंने राग-द्वेष को जीत लिया है वह जिन, तीर्थकर, सर्वज्ञ भगवान् १ आ-समन्ताद् गम्यते वस्तुतत्त्वमनेनेत्यागमः ।.... २ आगम्यन्ते मर्यादयाऽवबुद्धयन्तेऽर्थाः अनेनेत्यागमः। -रत्नाकरावतारिका वृत्ति ३ आ-अभिविधिना सकलश्रुतविषयव्याप्ति रूपेण, मर्यादया वा यथावस्थित प्ररूपणा रूपया गम्यन्ते-परिच्छिद्यन्ते अर्थाः येन स आगमः । -आवश्यक मलयगिरि वृत्ति -नबी सूत्र वृत्ति ४ आगच्छत्याचार्यपरम्परया वासनाद्वारेणेत्यागमः । . -सिद्धसेनगमी कृत भाष्यानुसारिणी टीका पृ०५७ ५. आप्तवचनादाविर्भूतमर्थसंवेदनमागमः । उपचारादाप्तवचनं च । -स्याद्वावर्मजरी, ३८ श्लो० टीका ६ आप्तोपदेशः शब्दः-ग्यायसूत्र ११७ ७. सासिज्जई जेण तयं सत्यं तं वा विसेसियं नाणं । आगम एव य सत्थं आगमसत्यं तु सुयनाणं ॥ -विशेषावश्यक भाष्य गा०५५६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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