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________________ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा रक्षा रूप दया के लिए प्रवचन किये।' आत्म-साधना का नवनीत जन-जन के समक्ष प्रस्तुत किया । यही कारण है कि जैनागमों में जिस प्रकार आत्मसाधना का वैज्ञानिक और क्रमबद्ध वर्णन उपलब्ध होता है, वैसा किसी भी प्राचीन पौर्वात्य और पाश्चात्य विचारक के साहित्य में नहीं मिलता । वेदों में आध्यात्मिक चिन्तन नगण्य है और लोकचिन्तन अधिक । उसमें जितना देवस्तुति का स्वर मुखरित है, उतना आत्म-साधना का नहीं । उपनिषद् आध्यात्मिक चिन्तन की ओर अवश्य ही अग्रसर हुए हैं किन्तु उनका ब्रह्मवाद और आध्यात्मिक विचारणा इतनी अधिक दार्शनिक है कि उसे सर्वसाधारण के लिए समझना कठिन ही नहीं, कठिनतर है । जेनागमों की तरह आत्मसाधना का अनुभूत मार्ग उनमें नहीं है। डाक्टर हर्मन कोबी, डाक्टर शुनिंग प्रभृति पाश्चात्य विचारक भी यह सत्य तथ्य एक स्वर से स्वीकार करते हैं कि जैनागमों में दर्शन और जीवन का, आचार और विचार का, भावना और कर्तव्य का, जैसा सुन्दर समन्वय हुआ है; वैसा अन्य साहित्य में दुर्लभ है। आगम के पर्यायवाची शब्द * मूल वैदिक शास्त्रों को जैसे 'वेद', बौद्ध शास्त्रों को जैसे 'पिटक' कहा जाता है वैसे ही जैन शास्त्रों को 'श्रुत' 'सूत्र' या आगम कहा जाता है । आजकल आगम शब्द का प्रयोग अधिक होने लगा है किन्तु अतीतकाल में श्रुत शब्द का प्रयोग अधिक होता था । श्रुतकेवली, श्रुत स्थविर शब्दों का प्रयोग आगमों में अनेक स्थलों पर हुआ है किन्तु कहीं पर भी आगम- केवली या आगम-स्थविर का प्रयोग नहीं हुआ है। सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धान्त, प्रवचन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापन, आगम, आप्तवचन, ऐतिह्य, आम्नाय और जिनवचन श्रुत ये सभी आगम के ही पर्यायवाची शब्द हैं । १ सब्वजगजीवरक्खणदयट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं । --- प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार २ नन्दी सु० ४१ ३. स्थानांग० सू० १५० ४ सुयसुत्त ग्रन्थ सिद्ध तपवयणे आणवयण उवएसे पण्णवण आगमे या एगट्टा — अनुयोगद्वार ४, विशेषावश्यक भाष्य गा० ८६७ पज्जवासु ५ तत्त्वार्थभाष्य० १-२०
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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