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२. दशवेकालिक सूत्र
नामकरण
मूल आगमों में दशवेकालिक का महत्त्वपूर्ण स्थान है । नन्दीसूत्र में आवश्यकव्यतिरिक्त के कालिक और उत्कालिक ये दो भेद किये हैं। उसमें दशवेकालिक उत्कालिक में प्रथम है । अस्वाध्याय के अतिरिक्त सभी प्रहरों में यह पढ़ा जा सकता है। चार अनुयोगों में दशवेकालिक का समावेश चरणकरणानुयोग में होता है। इसमें चरण ( मूलगुण) करण ( उत्तरगुण) इन दोनों का अनुयोग है। धवला के अनुसार दशवेकालिक आचार और गोचर की विधि का वर्णन करने वाला सूत्र है । अंगपण्णत्ती के अभिमतानुसार इसका विषय गोचरविधि और पिंडविशुद्धि है । तस्वार्थसूत्र श्रुतसागरीयावृत्ति में इसे वृक्षकुसुम आदि का भेदकथक और यतियों के आचार का कथक कहा है।"
१ से किं तं उक्कालियं ? उक्कालियं अणेगविहं पण्णत्तं तं जहा दसवेयालियं ।
—नवीसूत्र
२ (क) दशर्वकालिक - अगस्त्य सिंह चूर्णि (ख) दशवेकालिक नियुक्ति गा० ४ ३ चरणं मूलगुणाः ।
वय समण धम्म संयम, वेयावच्चं च बंभगुत्तीओ । णाणाइतियं तव, कोहनिग्गहाई चरणमेयं ॥
- प्रवचनसारोद्वार गा० ५५२
४ करणं उत्तरगुणाः ।
fisfaसोही समिई भावण पडिमा इ इंदियनि रोहो । पडिलेहण गुत्तीओ, अभिग्गहा चैव करणं तु ॥ ५ दसवेयालियं आयार-गोयर विहिं वण्णे ।
वही, गाया ५६३
:- षट्खंडागम, सत्प्ररूपणा १-१-१, पृ० १७
अंगपण्णत्ती ३।२४
६ जदि गोचरस्स विहि, पिंडविसुद्धि व जं परूवेहि । दसवेआलिय सुतं दहकाला जत्थ संवृत्ता ॥ ७ वृक्षकुसुमादीनां दशानां भेदकथकं यतीनामाचारकथकं च दशवेकालिकम् । -तरवार्यवृत्ति तसागरीया, पृ० ६७