________________
३०० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा दीप्तिमान है जैसे आज ही दिया गया हो। यह वह शाश्वत सत्य है जो कभी धूमिल नहीं होगा।
तेईसवें अध्ययन का नाम 'केशीगौतमीय है। इसमें भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य केशी और भगवान महावीर के शिष्य गौतम के बीच एक ही धर्म में सचेल-अचेल, चार महाव्रत और पाँच महाव्रत परस्पर विपरीत विविध धर्म के विषय भेद को लेकर संवाद होता है। इसमें यह प्रतिपादित किया गया है कि समय के अनुसार बाह्य आचरण में परिवर्तन कर लिया जाता है। यह अध्ययन कई दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। . . चौबीसवाँ अध्ययन 'समितीय' है। नेमिचन्द्रवृत्ति में इसका नाम 'प्रवचनमाता' प्राप्त होता है। इसमें प्रवचनमाता अर्थात् पाँच समिति और तीन गुप्ति का वर्णन है। मां जैसे पुत्र का लालन-पालन व रक्षण करती है और सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है वैसे ही प्रवचनमाता साधक को साधनापथ पर सम्यक् विधि से प्रयाण करने की प्रेरणा देती है।
पच्चीसवाँ अध्ययन 'यज्ञीय' है। भारतवर्ष के धार्मिक इतिहास में यज्ञ-पूजा का प्रारम्भ से महत्त्व रहा है। महावीर के समय उसका प्रभुत्व था। महावीर ने सच्चा यज्ञ क्या है, सच्चा ब्राह्मण कौन होता है यह लोगों को समझाया। प्रस्तुत अध्ययन में बताया है कि वाराणसी नगरी में जयघोष और विजयघोष दो भाई थे। वे काश्यपगोत्री ब्राह्मण थे। एक बार जयघोष गंगा में नहाने हेतु गया। वहां उसने एक सर्प को मेंढक निगलते हुए देखा। इतने में एक कुरर पक्षी आया । उसने सांप को पकड़ा। सांप के मुंह में मेंढक है और कुरर के मुख में साँप है। यह दृश्य देखकर जयघोष विरक्त हो गया
और वह श्रमण बन गया। एक बार जयघोष वाराणसी में भिक्षा की अन्वेषणा करते हुए यज्ञमंडप में पहुँचे। जहाँ विजयघोष अनेक ब्राह्मणों के साथ यज्ञ कर रहा था। तप से जयघोष का शरीर अति क्षीण हो चुका था। विजयघोष उसे पहचान न सका। विजयघोष ने भिक्षा देने से इन्कार किया। मुनि शांत रहे और बोध देने की भावना से कहा कि तुम्हें जानना चाहिए कि जो तुम कर रहे हो वह वास्तविक यज्ञ नहीं है। विषय, कषाय, वासनाओं को ज्ञानाग्नि में डालकर जलाना सच्चा यज्ञ है। सत्-चारित्र से सच्चा ब्राह्मण होता है । जाति से ही कोई मानव ब्राह्मण नहीं होता। मुनि के उपदेश से विजयघोष को यथार्थ ज्ञान हुआ और वह विरक्त होकर सम्यक्