________________
जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
अठारहवें अध्ययन में राजर्षि संजय का वर्णन है । वह कांपिल्य नगर का राजा था। शिकार के लिए एक बार वह जंगल में गया। वह हिरनों का पीछा कर उन्हें बाणों से मार रहा था। कुछ दूर आगे बढ़ने पर मृत हिरनों के पास ही मुनि को ध्यानस्थ देखा। राजा ने सोचा ये हिरन मुनि के हैं जो मैंने मार डाले हैं। यदि मुनि क्रुद्ध हो जायेंगे तो जला कर लाखों-करोड़ों व्यक्तियों को भस्म कर देंगे। राजा भय से काँपकर मुनि से क्षमायाचना करने लगा। मुनि गर्दभाली ने ध्यान खोलकर कहा - 'मेरी ओर से तुम्हें अभय है पर दूसरों को भी तुम अभय देने वाले बनो। जिनके लिए तुम यह अनर्थ कर रहे हो वे तुम्हें बचा नहीं सकेंगे ।' मुनि के उपदेश से राजा संजय मुनि बन गया। एक बार संजय मुनि का एक क्षत्रिय राजर्षि के साथ संवाद होता है। इस संवाद में भरत, सगर, मधवा, सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुंथुनाथ, अरनाथ, महापद्म, हरिषेण और जय नामक चक्रवर्तियों तथा दशार्णभद्र, नमि, करकण्डू, द्विमुख, नग्नजित्, उद्दायन, काशीराज, विजय और महाबल नामक राजाओं के दीक्षित होने का उल्लेख है । उन्नीसवें अध्ययन का नाम 'मृगापुत्रीय' है। राजकुमार मृगापुत्र अपनी पत्नियों के साथ महल के गवाक्ष में बैठा हुआ नगर की शोभा को निहार रहा था। उसकी दृष्टि एक तेजस्वी सन्त पर जा टिकी । वह मंत्र - मुग्ध सा देखता रहा । उसे पूर्वभव की स्मृति हो आई। भोग उसे रोग प्रतीत हुए। माता-पिता से वह प्रव्रज्या की बात करता है और वे उसे समझाने का प्रयत्न करते हुए कहते हैं कि साघु जीवन बहुत दुष्कर और कठोर होता है । लोहे के जो चबाने के समान है। तुम साधु जीवन की कठोर चर्या सहन नहीं कर सकोगे क्योंकि तुम सुकुमार हो । मृगापुत्र ने कहा- पूर्व जन्म में नरक की भयंकर वेदनाएँ परतंत्र व असहाय स्थिति में कितनी ही बार सहन की हैं। माता-पिता - साधु जीवन में तुम्हारा कौन ध्यान रखेगा ? बीमार होने पर कौन तुम्हारी चिकित्सा करेगा ? मृगापुत्र ने कहा- जंगल में मृग रहते हैं, जब बीमार हो जाते हैं तो उनकी देखभाल कौन करता है ? जिस प्रकार वन के मृग किसी भी प्रकार की व्यवस्था के बिना स्वतंत्र जीवनयापन करते हैं उसी प्रकार मैं भी रहूँगा । संभवतः मृगचर्या का उल्लेख होने से इस अध्ययन का नाम समवायांग में मृगचर्या दिया है। मृगापुत्र की प्रधानता होने से बाद में मृगापुत्रीय नाम हो गया हो ऐसा प्रतीत होता है। Satara अध्ययन का नाम 'महानिर्ग्रन्थीय' है । इसमें अनाथी मुनि और
२६८