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जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा
मुद्राएँ खो दीं। (३) किसी राजा ने अपथ्य आहार करके अपना सारा राज्य खो दिया । ( ४ ) मनुष्य जीवन के सुख ओसकण की तरह अल्प और क्षणिक हैं और दिव्यसुख सागर के समान विशाल और स्थायी हैं । (५) पिता का आदेश पाकर तीन पुत्र व्यापार करने गये। एक व्यापार में बहुत धन कमाकर लौटा। दूसरा जैसे गया था, वैसे ही मूल पूँजी बचाकर लौट आया। तीसरा जो पूँजी लेकर गया था, वह भी खो आया।
आठवाँ अध्ययन 'कापिलीय' है । कपिल लोभ से विरक्त होकर मुनि बनता है। चोरों ने उसे घेर लिया। उस समय उसने संगीतात्मक उपदेश दिया। उसी का इसमें संग्रह है। कपिलमुनि के द्वारा यह गाया गया है अत: इसे कापिलीय कहा गया है । सूत्रकृतांगचूर्णि में इसे गेय माना है। नाम के दो प्रकार होते हैं-निर्देश्य अर्थात् विषय के आधार पर और निर्देशक (वक्ता) के आधार पर इस अध्ययन का नाम निर्देशकपरक होने से कापिलीय रक्खा है। लोभ किस प्रकार बढ़ता है, इसका अनुभूत चित्र इसमें खींचा गया है। ज्यों-ज्यों लाभ होता है त्यों-त्यों लोभ बढ़ता है। दो माशा सोने की इच्छा एक करोड़ से भी पूरी नहीं हुई ।
नवाँ अध्ययन 'नमिप्रव्रज्या' है। श्रमणमुनि वही बनता है जिसे बोधिप्राप्त हो । वे तीन प्रकार के होते हैं - (१) जो स्वयं बोधि प्राप्त करते हैं उन्हें स्वयंबुद्ध कहा जाता है। (२) जो किसी एक घटना के निमित्त से बोधि प्राप्त करते हैं उन्हें प्रत्येकबुद्ध कहा जाता है। (३) जो बोधिप्राप्त व्यक्तियों के उपदेश से बोधि प्राप्त करते हैं उन्हें बुद्धबोधित कहते हैं। प्रस्तुत सूत्र में तीनों का वर्णन है । [ स्वयंबुद्ध कपिल (८), प्रत्येकबुद्ध नमि (e) और बुद्धबोधित संजय (१८ वां अध्ययन ) ] इस अध्ययन में प्रव्रज्या के लिए अभिनिष्क्रमण करने वाले राजर्षि नमि का ब्राह्मणवेशधारी इन्द्र के साथ आध्यात्मिक संवाद है। उसमें प्रव्रज्या के समय उठने वाले सामान्य व्यक्ति के मानसिक अन्तर्द्वन्द्व का बहुत ही सुन्दर चित्रण है । प्रस्तुत संवाद में नमि की प्रव्रज्या का वर्णन होने से इसका नाम नमिप्रव्रज्या है | अन्यान्य आश्रमों से संन्यास को श्रेष्ठ कहा है। दान से संयम श्रेष्ठ है आदि का स्फुट निर्देश है।
दसवें अध्ययन का नाम 'द्रुमपत्रक' है। आद्य पद्य के आधार से इसका नाम रखा गया है जिसका अर्थ है वृक्ष का पका हुआ पत्ता । जैसे वृक्ष का पीला पड़ा हुआ पत्ता समय व्यतीत होने पर स्वयं ही झड़ कर गिर