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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य २६३ करता। सर्दी से ठिठुरता हुआ भी अग्नि की इच्छा नहीं करता। डांसमच्छर उसे अपार कष्ट दे रहे हों तथापि उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुँचाता। साधक सभी परीषहों में दृढ़तापूर्वक आत्मचिन्तन करता रहता है। तृतीय 'चतुरंगीय' अध्ययन में मानवता, धर्मश्रवण, श्रद्धा व तपसंयम में पुरुषार्थ इन चार दुर्लभ अंगों का निरूपण किया गया है। चतुर्थ 'असंस्कृत' अध्ययन की १३ गाथाओं में संसार की क्षणभंगुरता का प्रतिपादन करके भारंडपक्षी की तरह अप्रमत्त रहने का उपदेश दिया गया है। जीवन असंस्कृत है, इसका संधान नहीं किया जा सकता। अत: प्रमाद का परित्याग करना चाहिये। क्रोध, मान, माया और लोभ का परित्याग करना चाहिए। पाँचवाँ अध्ययन 'अकाममरणीय' है । नियुक्ति में इसका दूसरा नाम 'मरणविभक्ति' मिलता है। जीवन की भांति मृत्यू भी कला है। जिन लोगों को यह कला नहीं आती वे सदा के लिए अपने पीछे दूषित वातावरण छोड़ जाते हैं । अत: मरणविवेक आवश्यक है। मरण-अकाममरण और सकाममरण रूप में दो प्रकार का है। सदसत् विवेक से शून्य मूढ़ पुरुषों का मरण अकाममरण है जो पुन:-पुनः होता है। विवेकी पुरुषों का मरण सकाममरण है जो एक ही बार होता है । इस सकाममरण को समाधिमरण और पंडितमरण भी कहा गया है। छठा 'क्षुल्लक निर्ग्रन्थीय' अध्ययन है। इसमें निग्रंथ के बाह्य और आभ्यन्तर ग्रन्थ त्याग का संक्षिप्त निरूपण है। निर्ग्रन्थ शब्द जैनपरम्परा का विशिष्ट शब्द रहा है। बौद्ध साहित्य में भी इसका उल्लेख है । ग्रन्थ को त्राण मानना अविद्या है। समवायांग में इस अध्ययन का नाम 'पुरुषविद्या' मिलता है। इस नामकरण का आधार प्रस्तुत अध्ययन की प्रथम गाथा 'जावंतऽविज्जापुरिसा' है। - सातवां अध्ययन 'एलय (उरब्भिय) है। एलय और उरब्भिय का अर्थ है बकरा। इस अध्ययन में पांच कथाओं का निरूपण है। जैसे (१) कोई व्यक्ति अतिथि के लिए बकरे को चावल और यव (जो) खिलाकर हृष्ट-पुष्ट बनाता है। जब तक अतिथि नहीं आता तब तक वह प्राण धारण करता है । अतिथि के आते ही लोग उसे मारकर खा जाते हैं। (२) जैसे काकिणी (रुपये का १००वाँ भाग) के लिए किसी मनुष्य ने हजारों सुवर्ण
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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