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अंगबाह्य आगम साहित्य २८७ दूसरी बात यह है कि अट्ठाइसवें अध्ययन में द्रव्य, गुण और पर्याय की जो संक्षिप्त परिभाषाएँ दी गई हैं वैसी परिभाषाएँ प्राचीन आगम साहित्य में नहीं मिलतीं। वहाँ पर विवरणात्मक अर्थ की प्रधानता है, अतः यह अध्ययन अर्वाचीन प्रतीत होता है।
दिगम्बर साहित्य में भी उत्तराध्ययन की विषय-वस्तु का संकेत किया गया है। वह इस प्रकार है
धवला में लिखा है-उत्तराध्ययन में उद्गम, उत्पादन और एषणा से सम्बन्धित दोषों के प्रायश्चित्तों का विधान है और उत्तराध्ययन उत्तरपदों का वर्णन करता है।
अंगपण्णत्ती में वर्णन है कि बाईस परीषहों और चार प्रकार के उपसों के सहन का विधान, उसका फल तथा प्रस्तुत प्रश्न का यह उत्तर है। यह उत्तराध्ययन का प्रतिपाद्य विषय है।
हरिवंश पुराण में आचार्य जिनसेन ने लिखा है कि उत्तराध्ययन में वीर-निर्वाण गमन का वर्णन है।"
१ तव्य-गुणाणमासओ दव्वं (द्रव्य गुणों का आश्रय है) तुलना करेंक्रियागुणवत् समवायिकारणमिति द्रव्य लक्षणम् ।
-वैशेषिकदर्शन प्र०अ० प्रथम आह्निक सूत्र १५ २ गुण-एगदबसिया गुणा । तुलना करें-- द्रव्याश्रय्यगुणवान् संयोगविमागेष्वकारणमनपेक्ष इति गुणलक्षणम् ।
-शे० वर्शन प्र० अ० प्रथम आन्हिक सू० १६ ३ पर्याय-लखणं पज्जवाणं तु उमओ अस्सिया भवे ।
-- उत्तराध्ययन तुलना करें-एकद्रव्यमगुणं संयोगविमागेष्वनपेक्षकारणमिति कर्म लक्षणम् ।
-वैशे० १११७ ४ उत्तरज्झयणं उग्गम्मुप्पायणेसणदोसगयपायच्छित्तविहाणं कालादि विसेसिद वण्णेदि।
-धवला पत्र ५४५ हस्तलिखित प्रति ५ उत्तरज्झयणं उत्तरपदाणि वण्णे।। -धवला पृ०१७ (सहारनपुर प्रति) ६ उत्तराणि अहिज्जति उत्तरायणं पदं जिणिदेहि ।
बावीसपरीसहाणं उवसग्गाणं च सहणविहिं ।। वण्णेदि तप्फलमवि, एवं पण्हे च उत्तरं एवं । कहदि गुरुसीसधाण पइण्णिय अट्ठमं तु खु ॥
-अंगपण्णत्ती ३२५-२६ ७ उत्तराध्ययनं वीर-निर्वाणगमनं तथा।
-हरिवंशपुराण १११३४