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________________ मिल अंगबाह्य आगम साहित्य २८५ हैं ? और उन्होंने कब इन अध्ययनों की रचना की? इस प्रश्न का उत्तर न नियुक्तिकार भद्रबाहु ने दिया है और न चूर्णिकार जिनदास महत्तर ने दिया है और न बृहद्वृत्तिकार शान्त्याचार्य ने ही दिया है। आधुनिक विज्ञों का ऐसा मानना है कि वर्तमान में उपलब्ध उत्तराध्ययन किसी एक व्यक्ति विशेष की रचना नहीं है अपितु अनेक स्थविर मुनियों की रचनाओं का संकलन है। उत्तराध्ययन के कुछ अध्ययन भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित हैं और कुछ अध्ययन स्थविरों द्वारा संकलित हैं। किन्तु यह निश्चित है कि देवद्धिगणी क्षमाश्रमण के समय तक उत्तराध्ययन छत्तीस अध्ययन के रूप में संकलित हो चुका था। एतदर्थ ही समवायांग में छत्तीस उत्तर-अध्ययनों के नाम उल्लिखित हुए हैं। विषय-वस्तु की दृष्टि से उत्तराध्ययन के अध्ययन धर्मकथात्मक, उपदेशात्मक, आचारात्मक और सैद्धान्तिक इन चार विभागों में विभक्त किए जा सकते हैं। जैसे(१) धर्मकथात्मक---७, ८, ९, १२, १३, १४, १८, १९, २०, २१, २२, २३, २५ र २७ (२) उपदेशात्मक --१, ३, ४, ५, ६ और १० (३) आचारात्मक-२, ११, १५, १६, १७, २४, २६, ३२ और ३५ (४) सैद्धान्तिक-२८, २९, ३०, ३१, ३३, ३४ और ३६ आर्यरक्षित (विक्रम की प्रथम शती) ने आगमों को चार अनुयोगों में विभक्त किया। उसमें उत्तराध्ययन को धर्मकथानुयोग के अन्तर्गत गिना है। हमारी दृष्टि से उत्तराध्ययन में धर्मकथानुयोग की प्रधानता होने से वर्गीकरण में लिया गया होगा किन्तु आचारात्मक अध्ययनों को चरणकरणानुयोग में और सैद्धान्तिक अध्ययनों को द्रव्यानुयोग में सहज रूप से लिया जा सकता है। इस प्रकार उत्तराध्ययन का जो वर्तमान रूप है उसमें अनेक अनुयोग सम्मिलित हैं। कुछ आधुनिक चिन्तकों का यह अभिमत है कि उत्तराध्ययन के पहले के अठारह अध्ययन प्राचीन हैं और उसके बाद के अठारह अध्ययन १ (क) देखिए ---दसवेआलियं तह उत्तरायणं की भूमिका : आचार्य तुलसी। (ख) उत्तराध्ययनसूत्र की भूमिका : कवि अमरमुनिजी । २ अत्र धम्माणुयोगेनाधिकारः - उत्तराध्ययनपूर्णि, पृ.६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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