________________
अंगबाह्य आगम साहित्य २८१ उत्तर शब्द पूर्व की अपेक्षा से ही है। चूणि में इन अध्ययनों की तीन प्रकार से योजना प्राप्त होती है।' (१) स-उत्तर
-पहला अध्ययन (२) निरुत्तर
-छत्तीसवाँ अध्ययन (३) स-उत्तर-निरुत्तर -बीच के सारे अध्ययन
किन्तु उत्तर शब्द की प्रस्तुत अर्थ योजना चूर्णिकार अधिकृत नहीं मानते हैं । वे नियुक्तिकार के द्वारा प्रस्तुत अर्थ को अधिकृत मानते हैं। नियुक्ति की दृष्टि से यह अध्ययन आचारांग के उत्तरकाल में पढ़े जाते थे इसलिए इन्हें उत्तर अध्ययन कहा गया है। उत्तराध्ययन की चूणि व वृहद्वृत्ति में भी इस कथन का समर्थन है। श्रुतकेवली आचार्य शय्यंभव के पश्चात् ये अध्ययन दशकालिक के उत्तरकाल में पढ़े जाने लगे। एतदर्थ ये उत्तर अध्ययन ही बने रहे हैं। यह उत्तर शब्द की व्याख्या संगत ज्ञात होती है।
दिगम्बर ग्रन्थों में उत्तर शब्द की अनेक दृष्टियों से व्याख्या प्राप्त होती है। धवला में लिखा है कि उत्तराध्ययन उत्तरपदों का वर्णन करता है। यह उत्तर शब्द समाधान का प्रतीक है। अंगपण्णत्ती में उत्तर शब्द के दो अर्थ ज्ञात होते हैं
(१) उत्तरकाल-किसी ग्रन्थ के पश्चात् पढ़े जाने वाले अध्ययन । (२) उत्तर-प्रश्नों का उत्तर देने वाले अध्ययन ।
इन अर्थों में उत्तर और अध्ययनों के सम्बन्ध में सत्य तथ्य का उद्घाटन किया गया है। उत्तराध्ययन में ४,१६, २३, २५ और २९वा
१ विणयसुयं सउत्तरं जीवाजीवाभिगमो णिरुत्तरो, सर्वोत्तर इत्यर्थः, सेसज्झयणाणि
सउत्तराणि णिरुत्तराणि य, कहं ? परीसहा विणयसुयस्स उत्तरा चउरंगिज्जस्स तु पुवा इतिकाउंणिरुत्तर ।
-उत्तराध्ययनचूमि, पृष्ठ ६ २ कमउतरेण पगयं आयारस्सेवः उवरिमाइंतु। तम्हा उ उत्तरा खलु अज्झयणा हुँति णायव्वा ।।
-उत्तराध्ययननियुक्ति गा०३ विशेषश्चायं यथा-शय्यम्भवं यावदेष क्रमः तदाऽऽरतस्तु दशवकालिकोत्तरकालं पठयन्त इति ।
-उत्तराध्ययन बृहद्वत्ति, पत्र ५ ४ उत्तरज्झयणं उत्तरपदाणि वण्णेइ।
-पवला, पृष्ठ ९७ ५ उत्तराणि अहिज्जति, उत्तरज्झयणं पदं जिणिदेहि। -अंगपण्णत्ती ३।२५,२६