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________________ १. उत्तराध्ययनसूत्र नामकरण __ आगम साहित्य में प्राचीन विभाजन के अनुसार उत्तराध्ययनसूत्र अंगबाह्य आवश्यकव्यतिरिक्त कालिकश्रुत का ही एक भेद है। सामान्य रूप से मूलसूत्रों की संख्या चार है। किन्तु उस पर जो विभिन्न मत हैं उनका दिग्दर्शन हम पूर्व पृष्ठों में कर चुके हैं। चाहे कितने मतभेद रहे हों पर सभी ने उत्तराध्ययन को मूलसूत्र माना है। उत्तराध्ययन में दो शब्द हैं-'उत्तर' और 'अध्ययन' । समवायांग में 'छत्तीसं उत्तरज्झयणा यह वाक्य प्राप्त होता है। इस वाक्य में उत्तराध्ययन के ३६ अध्ययनों का प्रतिपादन नहीं किन्तु ३६ उत्तर अध्ययन प्रतिपादित किये गये हैं । नन्दीसूत्र में भी 'उत्तरज्झयणाणि' यह बहुवचनात्मक नाम प्राप्त होता है। उत्तराध्ययन की अंतिम गाथा में भी 'छत्तीसं उत्तरज्झाए' इस प्रकार बहुवचनात्मक नाम मिलता है। नियुक्तिकार ने भी उत्तराध्ययन का बहुवचन में प्रयोग किया है। चूर्णि में ३६ उत्तराध्ययनों का एक श्रुतस्कन्ध माना है तथापि उन्होंने इसका नाम बहुवचनात्मक माना है। बहुवचनात्मक नाम से यह ज्ञात होता है कि उत्तराध्ययन अध्ययनों का एक योग मात्र है, एक कर्तृक एक ग्रन्थ नहीं। १ दशवकालिक भा० २, पृ० २२१, टिप्पण २६ तथा पृ० ३५२ टिप्पण ७८ २ समवायांग, समवाय ३६ ३ नन्दीसूत्र ४३ - ४ उत्तराध्ययन ३६२६८ उत्तराध्ययननियुक्ति, गा०४, पृ० २१ पा. टि०४ एतेसिं चेव छत्तीसाए उत्तरज्झयणाणं समुदय समितिसमागमेणं उत्तरायणभावसुतक्खंघे ति लम्मद, ताणि पुण छत्तीसं उत्तरज्झयणाणि इमेहिं नामेहि अणुगंतव्वाणि । -उत्तराध्ययनचूणि पृष्ठ
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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