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अंगबाह्य आगम साहित्य के द्वारा जीवन-शोधन की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला गया है। पिता जहाँ कषाय के वशीभूत होकर मरण करके नरक में जाते हैं वहीं पुत्र सत्कर्मों के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करते हैं। उत्थान और पतन का दायित्व मानव के स्वयं के कर्मों पर आधारित है। मानव साधना से भगवान भी बन सकता है और विराधना से भिखारी भी ।
तीसरा वर्ग पुष्पिका है । इसके भी दश अध्ययन हैं- चन्द्र, सूर्य, शुक्र, बहुपुत्रिक, पूर्णभद्र, माणिभद्र, दत्त, शिव, वलेपक और अनाहत ।
पहले अध्ययन में भगवान महावीर राजगृह में एक बार विराजित थे | ज्योतिषीइन्द्र चन्द्र अवधिज्ञान से भगवान को राजगृह में देखकर अपने विमान सहित भगवान के दर्शनहेतु आया । विविध प्रकार के नाट्य किये । गौतम की जिज्ञासा पर भगवान ने उसके पूर्वभव का कथन किया । इसी प्रकार दूसरे अध्ययन में सूर्य का भगवान के समवसरण में विमान सहित आगमन, नाट्यविधि और भगवान का पूर्वभव कथन आदि का वर्णन है ।
तीसरे अध्ययन में शुक्र महाग्रह का वर्णन है । इस अध्ययन में भगवान महावीर के दर्शन हेतु शुक्र आया और पूर्ववत् नाट्यविधि दिखाकर पुन: अपने स्थान लौट गया। भगवान ने उसके पूर्वभव का कथन करते हुए कहा - यह वाराणसी में सोमिल नामक ब्राह्मण था । वेद-शास्त्रों में निष्णात था । एक बार भगवान पार्श्व वाराणसी पधारे। सोमिल भगवान पार्श्व के दर्शन हेतु गया और उसने भगवान से प्रश्न किये भगवन् ! आपके यात्रा आपके यापनीय है ? सरिसव, मास और कुलत्थ भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ? आप एक हैं या दो हैं ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर भगवान ने स्याद्वाद की भाषा में दिया ।
( यह स्मरण रखना चाहिए कि यह सोमिल जिसने भगवान पार्श्व से प्रश्न किये थे वह और भगवतीसूत्र में १८वें शतक के १०वें उद्देशक में भी सोमिल ब्राह्मण का वर्णन है जिसने इसी प्रकार के प्रश्न भगवान महावीर से किये थे, ये दोनों दो भिन्न व्यक्ति थे। क्योंकि भगवान पार्श्व से प्रश्न करने वाला सोमिल ब्राह्मण वाराणसी का था और महावीर से प्रश्न करने वाला सोमिल वाणिज्यग्राम का । काल घटना की दृष्टि से भी दोनों पृथक्पृथक् ही थे । नाम साम्य से भ्रम में पड़ना उचित नहीं ।)
भगवान पार्श्व के वाराणसी से विहार करने के पश्चात् कुसंगति के कारण सोमिल पुन: मिथ्यात्वी बन जाता है। एक रात्रि में कुटुम्ब जाग