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________________ २७२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा राजाओं को बुलाकर मंत्रणा की। शरणागत की रक्षा के लिए उन्होंने युद्ध करना उचित समझा। राजा चेटक भगवान महावीर का परम उपासक था। उसने श्रावक के द्वादशवत ग्रहण कर रखे थे और उसका यह विशेष नियम भी था कि 'मैं एक दिन में एक से अधिक बाण नहीं चलाऊँगा।' उसका बाण अमोघ था, कभी भी निष्फल नहीं जाता था। पहले दिन कूणिक की ओर से कालकुमार सेनापति होकर सामने आया। उसने गरुडव्यूह की रचना की। राजा चेटक ने शकट व्यूह की रचना की। परस्पर भयंकर युद्ध हआ। राजा चेटक ने अमोघ बाण का प्रयोग किया। कालकूमार जमीन पर गिर पड़ा और मरकर नरक में गया। यह पहले अध्ययन में वर्णन है । साथ ही कूणिक का जन्म, चेलना का दोहद और चेलना का कृणिक को पूर्वघटना बताकर पिता के प्रति प्रेम जाग्रत करने का भी वर्णन है। इसी प्रकार एक-एक कर अन्य नौ भाई सेनापति बन कर आते हैं और राजा चेटक के अमोघ बाण से मर कर नरक में जाते हैं। क्रमशः नौ अध्ययनों में नौ भ्राताओं का वर्णन है। यह वर्णन चंपानगरी में भगवान महावीर से कुमारों की माताएँ पूछती हैं और भगवान उसका कथन करते हैं। ये दसों कुमार नरक से निकलकर महाविदेह में जन्म लेंगे। वहाँ वैराग्य और श्रमणधर्म स्वीकार करके उत्कृष्ट साधना कर शिव पद प्राप्त करेंगे। द्वितीय कल्पावतंसिका वर्ग में दस अध्ययन हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं-पउम, महापउम, भद्द. सुभद्द, पउमभद्द, पउमसेन, पउमगुल्म, नलिनी गुल्म, आणंद और नंदन । चंपानगरी में राजा कुणिक राज्य करता था। उसकी रानी का नाम पद्मावती था। राजा श्रेणिक की एक रानी का नाम काली था। उसके काल नामक पुत्र हुआ। इसका उल्लेख प्रथम वर्ग में किया गया है। काल की पत्नी का नाम पद्मावती था। उसके पद्मकुमार नामक पुत्र हुआ। पद्मकुमार ने भगवान महावीर से श्रमणदीक्षा ग्रहण की और ११ अंगों का अध्ययन कर अन्त में अनशन कर सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ। वहां से महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष जायगा। इसी प्रकार शेष नौ अध्ययनों में भी राजा श्रेणिक के पौत्र, जिनके पिताओं का अनुक्रम से प्रथम वर्ग (निरयावलिया-कल्पिका) में वर्णन किया गया है, उनके पुत्रों ने भगवान महावीर के पास दीक्षा ग्रहण की। साधना के द्वारा आयु पूर्ण कर वे देवलोक में गए और वहाँ से फिर मनुष्य हो कर मोक्ष जायेंगे। इस प्रकार इस वर्ग में व्रताचरण
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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