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________________ ८-१२. निरयावलिया आदि पाँच सूत्र (कप्पिया, कप्पवडंसिया, पुप्फिया, पुप्फचुलिया, वहिदसा) निरयावलिया या निरयावलिका श्रतस्कन्ध में पांच उपांग समाविष्ट हैं। (१) निरयावलिका या कल्पिका (२) कल्पावतंसिका (३) पुष्पिका (४) पुष्पचूलिका और (५) वृष्णिदशा। विज्ञों का मंतव्य है कि ये पांचों उपांग निरयावलिका के नाम से ही पहले विश्रुत थे; फिर १२ उपांगों का १२ अंगों से सम्बन्ध स्थापित करते समय उन्हें पृथक्-पृथक् गिना गया। प्रो. विन्टरनित्ज का भी यही मन्तव्य है । जिस आगम में नरक में जाने वाले जीवों का पंक्तिबद्ध वर्णन हो वह निरयावलिया है । इस आगम में १ श्रुतस्कन्ध है, ५२ अध्ययन हैं, ५ वर्ग हैं, ११०० श्लोक प्रमाण मूलपाठ है । निरयावलिका के प्रथम वर्ग के १० अध्ययन हैं। इनमें काल, सुकाल, महाकाल, कण्ह, सुकण्ह, महाकण्ह, वीरकण्ह, रामकण्ह, पिउसेनकण्ह, महासेनकण्ह का वर्णन है। प्रथम अध्ययन में बताया है कि चंपानगरी में श्रेणिक राजा राज्य करते थे। उनकी महारानी चेलना से कूणिक का जन्म हुआ। श्रेणिक की काली नाम की एक अन्य रानी से कालकुमार का जन्म हुआ। कूणिक अपने पिता श्रेणिक को कारागृह में बन्दी बनाकर स्वयं राजसिंहासन पर आरूढ़ होता है। श्रेणिक कारागृह में आत्महत्या कर लेते हैं । कूणिक अपने लधु भ्राता हल्लकुमार और वेहल्लकुमार से सेचनक हाथी और अठारहसरा हार मांगता है किन्तु हल्ल और वेहल्ल कुमार कूणिक के भय से हार, हाथी व अपने अन्त:पुर को लेकर अपने मामा महाराजा चेटक के पास बैशाली पहुँच जाते हैं। कूणिक को ज्ञात होने पर उसने दूत भेजा किन्तु चेटक ने कहा 'शरणागत की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। यदि कूणिक हार और हाथी के बदले आधा राज्य दे दे तो ये हार और हाथी लौटा सकते हैं।' कूणिक को यह जानकर अत्यधिक क्रोध आया और वह अपने सभी भाइयों की सेना को लेकर संग्राम के लिए वैशाली पहुंचा। चेटक ने भी नव मल्लवी नव लिच्छवी १८ गण
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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