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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य २६६ वर्णन, कालोदधि समुद्र और पुष्कराद्ध द्वीप, मनुष्य क्षेत्र आदि का विबरण है। इन्द्र के अभाव में व्यवस्था, इन्द्र का जघन्य और उत्कृष्ट विरहकाल, मनुष्य क्षेत्र के बाहर चन्द्र की उत्पत्ति और गति तथा अन्त में स्वयंभूरमण समुद्र तक द्वीप-समुद्रों का आयाम, विष्कंभ, परिधि आदि का वर्णन है। बीसवें प्राभूत में चन्द्रादि का स्वरूप, राहु का वर्णन, राहु के दो प्रकार, जघन्य-उत्कृष्ट काल का वर्णन है । चन्द्र को शशी और सूर्य को आदित्य कहने का कारण यह है कि ज्योतिष्कों के इन्द्र-चन्द्र का मृग (शश) के चिन्ह वाला मृगांक नामक विमान है और सूर्य समय, आवलिका आदि से लेकर अवसर्पिणी, उत्सपिणी के काल का आदि करने वाला है इसलिए इन्हें शशी और आदित्य कहते हैं। चन्द्र और सूर्य की अग्रमहिषियाँ, चन्द्र, सूर्य के कामभोगों की मानवीय कामभोगों के साथ तुलना की गई है। इसके पश्चात् ८८ ग्रहों के नाम बताये गये हैं। चन्द्रप्रज्ञप्ति में चन्द्र के परिभ्रमण का उल्लेख मुख्य रूप से हुआ है। चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति का वर्णन प्रायः समान है। केवल मंगलाचरण के रूप में जो १८ गाथाएँ दी गई हैं वे विशेष हैं। . इस प्रकार हम देखते हैं कि सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति में प्राचीन ज्योतिष सम्बन्धी मूल मान्यताओं का संकलन किया गया है। इनके विषय की वेदांग ज्योतिष्क के साथ तुलना कर सकते हैं। पंच वर्षात्मक युग का मान कल्पित कर सूर्य और चन्द्र का गणित किया गया है । सूर्य के उदय व अस्त का विचार कर दिनमान का कथन है। उत्तरायण में सूर्य लवणसमुद्र के बाहरी मार्ग से जम्बूद्वीप की ओर आता है। उस समय सूर्य की चाल सिंहगति होती है । उसके बाद गजगति हो जाती है जिससे उत्तरायण के आरम्भ में दिन लघु और रात्रि बड़ी होती है और उत्तरायण की समाप्ति पर गति मंद होने से दिन बड़ा होने लगता है। इसी प्रकार दक्षिणायन के आरम्भ में सूर्य जम्बूद्वीप के भीतरी मार्ग से बाहर की ओर गतिवाला होता है जिससे दिन बड़ा और रात्रि छोटी होती है। प्रस्तुत सिद्धान्त परवर्ती साहित्य में दिनमान एवं उत्तरायण व दक्षिणायन के निरूपण का स्रोत है। नक्षत्रों के गोत्र आदि का वर्णन मुहर्तशास्त्र की नींव है। मुहर्तशास्त्र में प्रधान रूप से नक्षत्रों के स्वभाव और गुणों पर विचार किया जाता है।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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