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________________ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा बारहवें प्राभृत में नक्षत्र, चन्द्र, ऋतु, आदित्य और अभिवर्धित इन ५ संवत्सरों का वर्णन है। छह ऋतुओं का प्रमाण, छह क्षयतिथियाँ, छह अधिक तिथियाँ, एक युग में सूर्य और चन्द्र की आवृत्तियाँ और उस समय नक्षत्रों का योग और योगकाल आदि का वर्णन है । २६८ तेरहवें प्राभृत में कृष्ण और शुक्ल पक्ष में चन्द्र की हानि - वृद्धि बताई गई है । ६२ पूर्णिमा और ६२ अमावस्याओं में चन्द्र सूर्यो के साथ राहु का योग, प्रत्येक अयन में चन्द्र की मण्डलगति, आदि का वर्णन किया गया है। चौदहवें प्राभृत में कृष्ण और शुल्क पक्ष की ज्योत्स्ना और अन्धकार का प्रमाण बताया है। पन्द्रहवें प्राभृत में चन्द्रादि ज्योतिष्क देवों की एक मुहूर्त की गति है, नक्षत्र मास में चंद्र, सूर्य, ग्रहादि की मण्डल गति का वर्णन है। इसी प्रकार ऋतुमास में, आदित्य मास में भी मण्डलगति का निरूपण किया गया है। सोलहवें प्राभृत में चन्द्रिका, आतप और अन्धकार के पर्याय का वर्णन है । सत्रहवें प्राभृत में सूर्य-चन्द्र का व्यवन, उपपात आदि के सम्बन्ध में अन्य २५ मत-मतान्तरों का उल्लेख करने के बाद स्वमत का संस्थापन किया है। अठारहवें प्राभृत में भूमि से सूर्य चन्द्रादि की ऊँचाई का परिमाण बताते हुए अन्य २५ मत-मतान्तरों का उल्लेख करके स्वमत का प्रतिपादन किया है । चन्द्र-सूर्य के विमान के नीचे, ऊपर और समविभाग में ताराओं के 'विमान हैं। उनके कारण, एक चन्द्र का ग्रह, नक्षत्र और ताराओं का परिवार, मेरु पर्वत से ज्योतिष्क चक्र का अन्तर, जम्बूद्वीप में सर्व बाह्य आभ्यंतर, ऊपर-नीचे चलने वाले नक्षत्र, चन्द्र-सूर्यादि के संस्थान, आयाम, विष्कंभ और बाहुल्य । उनको वहन करने वाले देवों की संख्या और उनका दिशाक्रम से रूप, उनकी शीघ्र और मंद गति, अल्पबहुत्व । चन्द्र-सूर्य की अग्रमहिषियां परिवार, विकुर्वणा शक्ति, देव देवियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति आदि का वर्णन है । उन्नीसवें प्राभृत में चन्द्र, सूर्य संपूर्ण लोक को प्रकाशित करते हैं या लोक के एक विभाग को ? इस सम्बन्ध में बारह मत-मतान्तर बताते हुए स्वमत का निरूपण किया गया है। लवणसमुद्र का आयाम, विष्कंभ और चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, तारे का वर्णन है। उसी तरह धातकीखंड के संस्थान का
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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