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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य २६७ सातवें प्राभृत में बताया है कि सूर्य अपने प्रकाश द्वारा मेरु पर्वत आदि को और अन्य प्रदेशों को प्रकाशित करता है। आठवें प्राभृत में बताया है कि जो सर्व पूर्व-दक्षिण में उदित होता है। वह मेरु के दक्षिण में स्थित भरत आदि क्षेत्रों को प्रकाशित करता है । पश्चिम-उत्तर में उदित होने वाला सूर्य मेरु के उत्तर में स्थित ऐरावत आदि क्षेत्रों को प्रकाशित करता है। जंबूद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व-पश्चिम में जिस समय दिन है उस समय दक्षिण-उत्तर में रात्रि है । लवण समुद्र के दक्षिण - उत्तर में जिस समय दिन है उस समय पूर्व-पश्चिम में रात्रि है। free- fभन्न क्षेत्रों की अपेक्षा उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी काल का कथन किया गया है । नवें प्राभृत में पौरुषी छाया प्रमाण का उल्लेख करते हुए बताया है। कि सूर्य के उदय और अस्त के समय ५६ पुरुष प्रमाण छाया दिखाई देती है । इस प्राभृत में अनेक मत-मतान्तरों का उल्लेख करते हुए स्वमत की पौरुषी छाया के सम्बन्ध में स्थापना की है। दसवें प्राभत में २२ उप-अध्याय हैं। इनमें नक्षत्रों में आवलिका का क्रम, मुहूर्त की संख्या, पूर्व भाग, पश्चिम भाग और उभय भाग से चन्द्र के साथ योग करने वाले नक्षत्र, युग के प्रारम्भ में योग करने वाले नक्षत्रों का पूर्वादि विभाग, नक्षत्रों के कुल, उपकुल और कुलोपकुल, १२ पूर्णिमा व अमावस्याओं में नक्षत्रों के योग। समान नक्षत्रों के योगवाली पूर्णिमा व अमावस्या, नक्षत्रों के संस्थान, उनके तारे । वर्षा, हेमंत और ग्रीष्म ऋतुओं में मास क्रम से नक्षत्रों का योग और पौरुषी प्रमाण । दक्षिण, उत्तर और उभय मार्ग से चन्द्र के साथ योग करने वाले नक्षत्र । नक्षत्ररहित चन्द्रमण्डल, सूर्य रहित चन्द्रमण्डल, नक्षत्रों के देवता, ३० मुहूतों के नाम, १५ दिनों के व रात्रियों के व तिथियों के नाम । नक्षत्रों के गोत्र, नक्षत्रों में भोजन का विधान । एक युग में चन्द्र व सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग । एक संवत्सर के महीने, उनके लौकिक व लोकोत्तर नाम । पाँच प्रकार के संवत्सर और उनके ५-५ भेद हैं और अन्तिम शनैश्चर संवत्सर के २८ भेद हैं। दो चन्द्र, नक्षत्रों के द्वार, दो सूर्य उनके साथ योग करने वाले नक्षत्रों का मुहूर्त परिमाण । नक्षत्रों की सीमा, विष्कंभ आदि का प्रतिपादन किया गया है । ग्यारहवें प्राभृत में संवत्सरों के आदि अन्त और नक्षत्रों के योग का वर्णन हुआ है।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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