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२५६ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा हैं। प्रस्तुत पर्वत के पूर्व और पश्चिम में दो गुफाएं हैं जिन्हें तमिस्रग्रहा और खण्डपवायगुहा (गुफा) कहते हैं। इनमें दो देव निवास करते हैं। वैताढ्यपर्वत के दोनों ओर विद्याधर श्रेणियाँ हैं जहाँ पर विद्याधर रहते हैं। आभियोग श्रेणियों में अनेक देवी-देवताओं का निवास है। वैताढ्य पर्वत पर एक सिद्धायतन है। इसमें आगे चलकर दक्षिणार्ध भरतकूट का वर्णन है। उत्तरार्ध भरत एवं ऋषभकूट का भी वर्णन है।
द्वितीय वक्षस्कार में काल (समय) का निरूपण है। काल के अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी ये दो भेद किये गये हैं । अवसर्पिणी के सुषमासुषमा, सुषमा, सुषमादुषमा, दुषमासुषमा, दुषमा और दुषमादुषमा ये छह भेद (आरे) हैं और उत्सर्पिणी के इसके विपरीत छह भेद (आरे) हैं। काल का सूक्ष्मातिसूक्ष्म भेद से लेकर पल्योपम-सागरोपम तक का वर्णन किया है। वह इस प्रकार हैसमय
काल का सूक्ष्मतम अंश जघन्ययुक्त असंख्यात समय
१ आवलिका ४४४६३४४ आवलिका
१ प्राण संख्यात आवलि
१ उच्छ्वास
१नि:श्वास १ उच्छ्वास-नि:श्वास
१ प्राण ७प्राण
१ स्तोक ७ स्तोक
१ लव ३८. लव
१ घड़ी २ घड़ी (७७ लव)
१ मुहूर्त (=४८ मिनिट), ३० मुहूर्त
१ अहोरात्र ३० अहोरात्र
१ मास १२ मास ८४ लाख वर्ष
१ पूर्वाग " पूर्वांग
१ त्रुटितांग त्रुटितांग
१ त्रुटित
१ वर्ष
१ पूर्व
"
पूर्व
१ इस प्रकार १ मुहूर्त (४८ मिनिट) में ७७X४६ =३७७३ उच्छ्वास होते हैं।