________________
५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति
नामकरण
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति को कहीं पाँचवाँ उपांग लिखा है तो कहीं छठवाँ उपांग भी लिखा है। इस उपांग में एक अध्ययन है और सात बक्षस्कार हैं। उपलब्ध मूलपाठ का श्लोक प्रमाण ४१४६ है। १७८ गद्यसूत्र हैं और ५२ पद्यसूत्र हैं।
प्रथम वक्षस्कार (परिच्छेद) में भरतक्षेत्र का वर्णन है। सर्वप्रथम नमस्कार महामन्त्र है। मिथिलानगरी में जितशत्रु राजा था। उसकी रानी का नाम धारिणी था। उस नगरी के मणिभद्र नामक चैत्य में श्रमण भगवान महावीर का शुभागमन हुआ। उस समय इन्द्रभूति गौतम ने जम्बूद्वीप के सम्बन्ध में जिज्ञासा प्रस्तुत की। उत्तर में महावीर ने कहा-जम्बूद्वीप में अवस्थित पद्मवरवेदिका एक वनखण्ड से घिरी हुई है। वनखण्ड के मध्य में अनेक पुष्करणियाँ, वापिकाएँ, मंडप, गृह और पृथ्वीशिलापट्टक हैं। वहाँ पर अनेक व्यन्तर, देव और देवियाँ कमनीय क्रीड़ा करते हैं। जम्बूद्वीप के विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नाम के चार द्वार हैं। जम्बूद्वीप में हिमवान पर्वत के दक्षिण में भरतक्षेत्र है। भरतक्षेत्र में स्थाणु, कण्टक, विषम व दुर्गम स्थान, पर्वत, प्रपात, झरने, गर्त, गुफाएँ, नदियाँ, तालाब, वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लताएँ, वल्लियाँ, अटवियाँ, श्वापद, तृण आदि हैं। इसमें अनेक तस्कर, पाखण्डी, कृपण और वनीपक आदि हैं। यह विभाग अनार्य क्षेत्र का है जहाँ पर तीर्थंकर, चक्रवर्ती आदि इलाघनीय पुरुष जन्म नहीं लेते हैं। जिस विभाग में तीर्थंकर आदि श्लाघनीय पुरुषों का जन्म आदि होता है वहां पर अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग होते हैं। भरतक्षेत्र पूर्व-पश्चिम में फैला हुआ, उत्तर-दक्षिण में विस्तृत, उत्तर में पर्यक-पलंग के समान और दक्षिण में धनुष्य के पृष्ठ भाग समान, तीन ओर से लवण समुद्र से घिरा हुआ है। गंगा, सिन्धु और वैताढ्यपर्वत के कारण भरतक्षेत्र के छह विभाग हो गये हैं। इसका विस्तार ५२६. योजन है। वैताढ्यपर्वत के दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाएं हैं जो बनखण्डों से युक्त