SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अंगबाह्य आगम साहित्य २५१ या नहीं? कितने समय के बाद आहारार्थी होते हैं ? आहार में क्या लेते हैं ? सभी दिशाओं में से ग्रहण करके समग्न का परिणमन करते हैं ? ग्रहीत पुद्गलों का सर्वभाव से आहार करते हैं या कुछ अंश का? ग्रहीत सभी पुद्गलों का आहार करते हैं ? ___ जीव जो आहार लेते हैं वह आभोगनिर्वतित-स्वयं की इच्छा होने पर आहार लेना और अनाभोगनिर्वतित-बिना इच्छा के आहार लेना इस तरह दो प्रकार का है। इच्छा होने पर आहार लेने में जीवों की भिन्न-भिन्न कालस्थिति है। परन्तु बिना इच्छा लिया जाने वाला आहार तो निरन्तर लिया जाता है। वर्ण, रसादि सम्पन्न अनन्त प्रदेशीस्कन्ध वाला और असंख्यात प्रदेशी क्षेत्र में अवगाढ़ और आत्मप्रदेशों से स्पृष्ट ऐसे पुद्गल ही आहार के लिए उपयोगी होते हैं। प्रस्तुत पद के दूसरे उद्देशक के १३ द्वारों के माध्यम से जीवों के आहारक और अनाहारक इन दो विकल्पों की चर्चा की गई है। इसी तरह लोम आहार, प्रक्षेप आहार और ओज आहार किन-किन जीवों के होता है, इसका स्पष्टीकरण किया गया है। २६.३० और ३३ वा 'उपयोग, पश्यत्ता और अवधि' पद है। प्रज्ञापनासूत्र में जीवों के बोधव्यापार अथवा ज्ञानव्यापार के सम्बन्ध में इन तीन पदों में चर्चा-विचारणा की गई है। इसलिए यहाँ तीनों को एक साथ लिया गया है। ___ आत्मा विज्ञाता है। उसमें किसी प्रकार के रस, रूप आदि नहीं हैं। वह अरूपी होने पर भी सत् है। आत्मा अरूपी, लोकप्रमाण, प्रदेशों वाला, नित्य है और उसका गुण उपयोग है। संख्या की दृष्टि से अनन्त आत्माएँ हैं। 'उपयोग' यह आत्मा का लक्षण या गुण है। यद्यपि उपयोग में अवधि का समावेश होने पर इसका अलग पद देने का कारण यह है कि उस काल में अवधि का विशेष विचार हुआ था। प्रस्तुत पद में उपयोग के और पश्यत्ता के दो-दो भेद किये हैं-साकारोपयोग (ज्ञान) और अनाकारोपयोग (दर्शन) साकारपश्यत्ता और अनाकारपश्यत्ता। आचार्य अभयदेव ने पश्यत्ता को उपयोग-विशेष ही कहा है। अधिक स्पष्टीकरण करते हुए बताया है कि जिस बोध में केवल त्रैकालिक अवबोध होता हो वह पश्यत्ता है परन्तु जिस बोध में वर्तमानकालिक बोध होता है
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy