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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य २४३ नवें पद का नाम योनिपद है। एक भव में से आयु पूर्ण होने पर जीव अपने साथ कार्मण और तेजस शरीर लेकर गमन करता है। जन्म लेने के स्थान में नये जन्म के योग्य औदारिक आदि शरीर के पुद्गलों को ग्रहण करता है। उस स्थान को योनि अथवा उत्पत्ति स्थान कहते हैं । प्रस्तुत पद में योनि का अनेक दृष्टि से विचार किया गया है। शीत, उष्ण, शीतोष्ण, सचित्त, अचित्त, मिश्र, संवृत, विवृत और संवतविवृत इस प्रकार जीवों के ९ प्रकार की योनि-स्थान अर्थात् उत्पत्तिस्थान हैं। इन सभी का विस्तार से निरूपण किया गया है।। दसवें पद में द्रव्यों के चरम और अचरम का विवेचन है । जगत की रचना में कोई चरम अन्त में होता है तो कोई अचरम अन्त में नहीं किन्तु मध्य में होता है। प्रस्तुत पद में विभिन्न द्रव्यों के लोक-अलोक आश्रित चरम और अचरम के सम्बन्ध में विचारणा की गई है। चरम-अचरम यह अन्य किसी की अपेक्षा से ही हो सकते हैं। प्रस्तुत पद में छह प्रकार के प्रश्न पूछे गये हैं--(१) चरम है, (२) अचरम है, (३) चरम हैं (बहुवचन), (४) अचरम हैं, (५) चरमान्त प्रदेश हैं, (६) अचरमान्त प्रदेश हैं। इन छह विकल्पों को लेकर २४ दंडकों के जीवों का गत्यादि दृष्टि से विचार किया गया है। उदाहरणार्थ, गति की अपेक्षा से चरम उसे कहते हैं कि जो अब अन्य किसी गति में न जाकर मनुष्य गति में से सीधा मोक्ष में जाने वाला है। किन्तु मनुष्य गति में से सभी मोक्ष में जाने वाले नहीं हैं, इसलिए जिनके भव शेष हैं वे सभी जीव गति की अपेक्षा से अचरम हैं। इसी प्रकार स्थिति आदि से भी चरम-अचरम का विचार किया गया है। भाषापद ___ ग्यारहवाँ भाषापद है। इस पद में भाषा सम्बन्धी विचारणा करते हुए बताया है कि भाषा किस प्रकार उत्पन्न होती है, कहाँ पर रहती है, उसकी आकृति किस प्रकार की है, उसका स्वरूप, भेद-प्रभेद और बोलने वाला व्यक्ति इत्यादि अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर चिन्तन किया गया है। जो बोली जाय वह भाषा है। दूसरे शब्दों में कहें तो जो दूसरों के अवबोध-समझने में कारण हो वह भाषा है। भाषा का आदि कारण तो जीव है और उपादान १ भाष्यते इति भाषा २ भाषावबोधबीजभूता -प्रज्ञापनाटीका पृ० २४६ -प्रज्ञापनाटीका पृ० २५६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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