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________________ २४२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा भाग शेष रहने पर पर-भव का आयुष्य बांधते हैं और सोपक्रम हो तो त्रिभाग का भी विभाग करते-करते एक आवली मात्र आयु शेष रहने पर पर-भव का आयुष्य बांधते हैं। पंचेन्द्रिय तिर्यंच और मनुष्य में असंख्यात वर्ष की आयु वाला हो तो नियम से आयु के छह माह शेष रहने पर और संख्यात वर्ष की आयु वाले यदि निरुपक्रम आयु वाले हों तो आयु का तीसरा भाग शेष रहने पर आयुष्य बाँधते हैं। जो सोपक्रम आय वाले हों तो एकेन्द्रिय के समान जानना चाहिये । आयुष्य बंध के छह प्रकार हैं । जातिनाम निद्धत आयु, गतिनाम, स्थितिनाम, अवगाहनानाम, प्रदेशनाम और अनुभावनानाम निद्धत आयु का निरूपण है। इन सभी में आयुकर्म का प्राधान्य है और उसके उदय होने से तत्सम्बन्धी उन-उन जाति आदि कर्म का उदय होता है। सातवें पद में सिद्ध के अतिरिक्त जितने भी संसारी जीव हैं उनके श्वासोच्छवास के काल की चर्चा है। आचार्य मलयगिरि ने लिखा है कि जितना दु:ख अधिक उतने श्वासोच्छ्वास अधिक होते हैं और अत्यन्त दुःखी को तो निरन्तर श्वासोच्छ्वास की प्रक्रिया चालू रहती है। ज्योंज्यों अधिक सुख होता है त्यों-त्यों श्वासोच्छ्वास लम्बे समय के बाद लिये जाते हैं यह अनुभव की बात है। श्वासोच्छवास की क्रिया भी दुःख है। देवों में जिनकी जितनी अधिक स्थिति है उतने ही पक्ष के पश्चात् उनकी श्वासोच्छ्वास की क्रिया होती है, इत्यादि का विस्तार से निरूपण है। आठवें संज्ञापद में जीवों की संज्ञा के सम्बन्ध में चिन्तन किया है। संज्ञा दश प्रकार की है-आहार, भय, मैथून, परिग्रह, कोध, मान, माया, लोभ, लोक और ओघ । इन संज्ञाओं का २४ दण्डकों की अपेक्षा से विचार किया है और संज्ञा-सम्पन्न जीवों के अल्पबहत्व का भी विचार किया है । नरक में भयसंज्ञा का, तिर्यंच में आहारसंज्ञा का, मनुष्य में मैथुनसंज्ञा का और देवों में परिग्रहसंज्ञा का बाहुल्य है। १ अतिदुःखिता हि नैरयिकाः दुःखितानां च निरन्तरं उच्छ्वास-निःश्वासौ, तथा लोके दर्शनात् -प्रज्ञापमाटोका पत्र २२० २ सुखितानां च यथोत्तरं महानुच्छ्वास-नि:श्वास क्रिया विरहकालः । प्रज्ञापनाटीका पत्र २२१ ३ यथा यथाऽऽयुषः सागरोपमवृद्धिस्तथा तथोच्छ्वास-निःश्वासक्रिया विरहप्रमाण स्थापि पक्षवृद्धिः।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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