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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य २४१ अलोकाकाश अनन्त है पर वहाँ पुद्गल या अन्य किसी द्रव्य की अवस्थिति नहीं है। परमाणुवादी न्याय-वैशेषिक परमाणु को नित्य मानते हैं और उसके परिणाम-पर्याय नहीं मानते जबकि जैन परमाणु को भी परिणामीनित्य मानते हैं । परमाणु स्वतंत्र होने पर भी उसके परिणाम होते हैं, यह प्रस्तुत पद से स्पष्ट होता है। परमाणु स्कन्धरूप में और स्कन्ध परमाणुरूप में परिणत होते हैं ऐसी प्रक्रिया जनाभिमत है। छठा व्युत्क्रांति पद है। इसमें जीवों की गति और आगति पर विचार किया गया है। चारों गतियों में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट बारह मूहर्त उपपात-विरहकाल और उद्वर्तना-विरहकाल है। उन गतियों के प्रभेदों पर चिन्तन करते हैं तो उपपात-विरहकाल और उद्वर्तना-विरहकाल प्रथम नरक में जघन्य एक समय और उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त का है। सिद्ध गति में उपपात है, उद्वर्तना नहीं है। आचार्य मलयगिरि ने लिखा है कि अगले अन्य सूत्रों में एक भी नरक का उपपात-विरहकाल १२ मुहूर्त नहीं है; २४ मुहूर्त और उससे अधिक है तो फिर १२ मुहर्त का विरहकाल किस रूप में घटित हो सकता है ? इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने स्पष्टीकरण किया है कि सातों नरकों को एक साथ रखकर विचार करें तो १२ मुहूर्त के बाद कोई न कोई जीव नरक में उत्पन्न होता ही है। इसी प्रकार अन्य गतियों में भी जानना चाहिए।' पाँच स्थावरों में निरन्तर उपपात और उद्वर्तना है। इसमें सान्तर विकल्प नहीं है। इसके पश्चात् एक समय में नरक से लेकर सिद्ध तक कितने जीवों का उपपात और उद्वर्तना है, इस पर चिन्तन किया गया है। साथ ही नारकादि के भेद-प्रभेदों में जीव किस-किस भव से आकर पैदा होता है और मरकर कहाँ-कहां जाता है, उसके पश्चात् पर-भव का आयुष्य जीव कब बांधता है इसकी चर्चा है । जीव ने जिस प्रकार का आयुष्य बाँधा है उसी प्रकार का नवीन भव धारण करता है। आयु के सोपक्रम और निरुपक्रम ये दो भेद हैं। इसमें देवों और नारकों में तो निरुपक्रम आयु है क्योंकि आकस्मिक मृत्यु नहीं होती और आयु के छह मास शेष रहने पर वे नवीन आगामी भव का आयुष्य बाँधते हैं। एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक के जीवों में दोनों प्रकार की आयु है। निरुपक्रम हो तो आयुष्य का तीसरा १ प्रज्ञापनाटीका पत्र २०५
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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