SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० ) का विवरण ५१४, आचार्य शीलांक की वृत्तियाँ ५१५, आचारांगवृत्ति ५१५, सूत्रकृतांगवृत्ति ५१५, वादिवेताल शान्तिसूरिकृत वृत्ति ५१६, द्रोणाचार्यकृत वृत्ति ५१७, आचार्य अभयदेव और उनकी वृत्तियाँ ५१८, स्थानांगवृत्ति ५१६, समवायांगवृत्ति ५२०, व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति ५२१. ज्ञाताधर्मकथावृत्ति ५२१, उपासकदशांगवृत्ति ५२२, अन्तकृत्दशावृत्ति ५२२, अनुत्तरोपपातिकदशावृत्ति ५२३, प्रश्नव्याकरणवृत्ति ५२३, विपाकवृत्ति ५२३, औपपातिकवृत्ति ५२३, आचार्य मलयगिरि की वृत्तियाँ ५२४, इनके उपलब्ध ग्रन्थ ५२५, अनुपलब्ध ग्रन्थ ५२६, नन्दीवृत्ति ५२६, प्रज्ञापनावृत्ति ५२७, सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्ति ५२८, ज्योतिष्करंडकवृत्ति ५२८, जीवाभिगमवृत्ति ५२६, व्यवहारवृत्ति ५३०, राजप्रश्नीयवृत्ति ५३१, पिण्डनिर्युक्तिवृत्ति ५३२, आवश्यक विवरण ५३२, बृहत्कल्पपीठिकावृत्ति ५३३, मलधारी हेमचन्द्र की वृत्तियों ५३४, आवश्यकवृत्तिप्रदेशव्याख्या ५३६, अनुयोगद्वारावृत्ति ५३६ विशेषावश्यकभाष्यबृहद्वृत्ति ५३७, आचार्य नेमिचन्द्रकृतवृत्ति ५३८ श्रीचन्द्रसूरि रचित टीकाएँ ५३८, निशीथचूर्णिदुर्गपदव्याख्या ५३८, निरयावलिकावृत्ति ५३६, जीतकल्पबृहणिविषमपदव्याख्या ५३६, अन्य टीकाएँ ५३६, टीकाकार एवं उनके ग्रन्थों की सूची ५३६, कल्पसूत्र और इसकी टीकाएँ ५४३, निर्युक्तिचूर्णि ५४७, कल्पान्तर्वाच्य ५४७, टीकाएँ ५४७, सन्देहविषौषधिकल्पपंजिका ५४७, कल्पकिरणावली ५४८ प्रदीपिकावृत्ति ५४८, कल्पदीपिका ५४८, कल्पप्रदीपिका ५४८, कल्पसुबोधिका ५४६, कल्पकौमुदी ५४६, कल्पव्याख्यानपद्धति ५४६, कल्पद्रुमकलिका ५४६, कल्पलता ५५०, कल्पसूत्र टिप्पनक ५५०, कल्पप्रदीप ५५० कल्पसूत्रार्थं प्रबोधिनी ५५१, आचार्य श्री घासीलालजी महाराज ५५१, लोकभाषाओं में रचित व्याख्याएँ ५५२, धर्मसिंहमुनि ५५२, अनुवादयुग ५५३, गुजराती अनुवाद ५५४, हिन्दी अनुवाद ५५५, उपसंहार ५५६ पंचम खंड- दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण ५५६-६०२ ५६१-६०२ दिगम्बर जैन आगम साहित्य : एक पर्यवेक्षण दिगम्बर श्वेताम्बर आम्नाय में आचार्य परम्परा में भेद-तालिका ५६२, दिगम्बर आम्नाय का स्थापना काल ५६३, यापनीय संघ दोनों परम्पराओं का मिला-जुला रूप ५६४ दिगम्बर प्राचीन साहित्य की भाषा -- शौरसेनी प्राकृत ५६५ षट्खंडागम ५६५, इसके छह खंड(१) जीवस्थान ५६६, (२) क्षुद्रकबंध ५६७, (३) बन्धस्वामित्वविचय ५६८, (४) वेदनाखंड ५६८, (५) वर्गणा ५६८, (६) महाबन्ध ५६९, षट्खंडागम और प्रज्ञापना एक तुलना ५६६, कषायपाहुड ( कषाय प्राभूत) ५७५, तिलोयपण्णसि ( त्रिलोकप्रज्ञप्ति ) ५७६, (१) सामान्य
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy