________________
( २६
)
ओघनियुक्ति
- ४१५-४२३ रचयिता ४१८, प्रतिलेखना ४१८, पिंड ४२१, उपधि ४२२, अनायतनवर्जन ४२२, प्रतिसेवना ४२३, आलोचना के मूल और उत्तर भेद ४२३ पिण्डनियुक्ति
४२४-४३२ सोलह उद्गम दोष ४२५, सोलह उत्पादन दोष ४२७, ग्रहणषणा के दस दोष ४२८, ग्रासषणा के पांच दोष ४३०, उपसंहार ४३१
. चतुर्थ खण्ड-आगमों का व्याख्यात्मक साहित्य ४३३-५५७ नियुक्ति साहित्य : एक विश्लेषण
४३४-४५५ नियुक्तियाँ ४३५, नियुक्तिकार कौन ? ४३७, आवश्यक नियुक्ति ४३६, दशर्वकालिक नियुक्ति ४४५, उत्तराध्ययन नियुक्ति ४४७, आचारागनियुक्ति ४४८, प्रथम श्रुतस्कंध ४४६, द्वितीय श्रुतस्कंध ४५१, सूत्रकृतांगनियुक्ति ४५१, दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति ४५२, बृहत्कल्पनियुक्ति ४५२, व्यवहारनियुक्ति ४५३, संसक्तनियुक्ति ४५४, निशीथनियुक्ति ४५४, गोविन्दनियुक्ति ४५४, आराधनानियुक्ति ४५४, ऋषिभाषितनियुक्ति ४५४, सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति ४५४, उपसंहार ४५५ भाष्य साहित्य : एक चिन्तन
४५६-४८७ भाष्य एवं भाष्यकार ४५७, जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण ४५८, विशेषावश्यकभाष्य ४६२, जीतकल्पभाध्य ४६६, संघदासगणी ४७३, बृहत्कल्पघुभाष्य ४७४, पंचकल्पमहाभाष्य ४८०, निशीथभाष्य ४८२, व्यवहारभाष्य ४८३, ओपनियुक्तिलघुभाष्य ४८६, पिण्डनियुक्तिभाष्य ४८६, उत्तराध्ययनभाष्य ४८७, दशवैकालिकभाष्य ४८८ चूणि साहित्य : एक अध्ययन
४८८-५०६ नंदीचुणि ४६१, अनुयोगद्वारचूणि ४६१, आवश्यकचूणि ४६१, दशवकालिकचूणि (अगस्त्यसिंह) ४६५, दशवकालिकचूणि (जिनदास) ४६७, उत्तराध्ययनचूणि ४६८, आचारांगचूणि ४६८, सूत्रकृतांगचूर्णि ४६६, जीतकल्पबृहच्चूणि ४६६, निशीथविशेषचूणि ५००, दशाश्रुतस्कंधचूणि ५०५, बृहत्कल्पचूणि ५०६ टीका साहित्य : एक विवेचन
५०७-५५७ टीका साहित्य का महत्त्व ५०८, जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण की स्वोपज्ञवृत्ति ५०६, आचार्य हरिभद्र की वृत्तियाँ ५०६, नंदीवृत्ति ५१०, अनुयोगद्वारवृत्ति ५१०, दशकालिकवृत्ति ५११, प्रज्ञापनाप्रदेशव्याख्या ५१२, आवश्यकवृत्ति ५१३, कोट्याचार्य का विवरण ५१४, आचार्य गन्धहस्ती