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________________ ( २८ ) ४. अनुयोगद्वार नामकरण ३३०, विषय-वस्तु ३३१, अनुयोगद्वार के रचयिता ३४४, - प्रस्तुत आगम का रचना काल ३४५ छेद आगम साहित्य ३४६-३८६ १. दशाश्रुतस्कन्ध ३४७-३५६ छेदसूत्रों का महत्त्व ३४७, दशाश्रुतस्कन्ध को विषय-वस्तु ३४८, उपसंहार ३५६ २. बृहत्कल्प ३५७-३६४ विषय-वस्तु ३५७ ३. व्यवहारसूत्र ३६५-३७३ विषयवस्तु ३६५, उपसंहार ३७३ ४. निशीथसूत्र ३७४-३८० नामकरण ३७४, पर्यायवाची नाम ३७७, निशीथ के रचयिता ३७७, विषय-वस्तु ३७६ ५. आवश्यकसूत्र .३८१-३८६ महत्त्व ३८१, विषय-वस्तु ३८१, सामायिक ३८२, चतुर्विंशतिस्तव ३५२, वन्दन ३८३, प्रतिक्रमण ३८४, कायोत्सर्ग ३०५, प्रत्याख्यान ३८५ प्रकीर्णक आगम साहित्य ३८७-४३२ प्रकीर्णक ३८८-४०३ (१) चतुःशरण ३८८, (२) आतुरप्रत्याख्यान ३८६, (३) महाप्रत्याख्यान ३६०, (४) भक्तपरिज्ञा ३९१ (५) तन्दुलवैचारिक ३९२, (६) संस्तारक ३६४, (७) गच्छाचार (गच्छायार) ३६६, (८) गणिविद्या (गणिविज्जा) ३६७, (8) देवेन्द्रस्तव (देविदथव) ३६८, (१०) मरणसमाधि (मरणसमाही) ४००, (११) चन्द्रवेध्यक (चन्दाविज्झय) ४०२, (१२) वीरस्तव (वीरत्थव) ४०३ महानिशीथ विषय-वस्तु ४०४, चूलाएँ ४०७, प्रस्तुत ग्रन्थ की तीन वाचनाएँ ४०७, रचयिता एवं रचना काल ४०७ जीतकल्प ४११-४१७ महत्त्व ४११, रचयिता ४११, प्रायश्चित्त का महत्व ४११, प्रायश्चित्त के भेद---आलोचना ४१२, प्रतिक्रमण ४१३, तदुभयाहं ४१४, विवेकाह ४१४, व्युत्सर्हि ४१४, तपार्ह ४१५, छेदाई ४१५, मूलाई ४१६, अनवस्थाप्यारी ४१६, पारांचिकाई ४१६
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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