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________________ २३० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा इन्द्रिय प्रधान ही है । जैसे वहाँ एकेन्द्रिय, वैसे यहाँ पृथ्वीकाय आदि काय शब्द को लेकर भेदों का निरूपण किया गया है। तीसरे पद से लेकर बाकी के पदों में जीवों का विभाजन गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार, भाषक, परित, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव, अस्तिकाय, चरिम, जीव, क्षेत्र, बंध इन सभी दृष्टियों से जीवों के भेदों का निरूपण है और उनके अल्पबहुत्व का विचार किया है । अर्थात् प्रज्ञापना में तृतीय पद के बाद के पदों में कुछ अपवाद छोड़कर सर्वत्र नारक से लेकर २४ दंडकों में विभाजित जीवों की विचारणा की गई है। विषय विभाग आचार्य मलयगिरि ने गाथा २ की व्याख्या करते हुए प्रज्ञापना में आये हुए विषय विभाग का संबंध जीवाजीवादि सात तत्त्वों के निरूपण के साथ इस प्रकार संयोजित किया है १-२ जीव - अजीव ३ आस्रव ४ बन्ध ५-७ संवर, निर्जरा और मोक्ष पद ३६ शेष पदों में क्वचित् किसी तत्व का निरूपण है । जैनदृष्टि से सभी तत्त्वों का समावेश द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में किया गया है। अत: आचार्य मलयगिरि ने द्रव्य का समावेश प्रथमपद में, क्षेत्र का द्वितीय पद में, काल का चतुर्थ पद में और भाव का शेष पदों में समावेश किया है। पद १, ३, ५, १० और १३ = ५ पद पद १६, २२ =२ पद पद २३ = १ पद १ पद प्रज्ञापना का भगवती विशेषण पाँचवें अंग का नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है और उसका विशेषण 'भगवती' है। प्रज्ञापना को भी 'भगवती' विशेषण दिया गया है। जबकि अन्य विशेषण किसी भी आगम के साथ यह विशेषण नहीं लगाया गया है। यह प्रज्ञापना की विशेषता का सूचक है। भगवती में प्रज्ञापनासूत्र के १, २, ५, ६, ११, १५, १७, २४, २५, २६, २७ पदों में विषय की पूर्ति करने की सूचना है । विशेषता यह है कि प्रज्ञापना उपांग होने पर भी भगवती आदि का L इस अपवाद के लिए देखिए पद १३, १८, २१ ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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