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अंगबाह्य आगम साहित्य २३१ सूचन उसमें नहीं किया गया है। इसका मूल कारण यह है कि प्रज्ञापना में जिन विषयों की चर्चा की गई है उन विषयों का उसमें सांगोपांग वर्णन है। महायान बौद्धों में प्रज्ञापारमिता के सम्बन्ध में लिखे हुए ग्रन्थ का अत्यधिक महत्त्व होने से अष्टसाहस्रिका प्रज्ञापारमिता ग्रन्थ का मात्र भगवती ऐसा उल्लेख है।
प्रज्ञापना के रचयिता
प्रज्ञापना के मूल में कहीं पर भी उसके रचयिता के नाम का निर्देश नहीं है। उसके प्रारंभ में मंगल के पश्चात् दो गाथाएँ हैं। उसकी व्याख्या आचार्य हरिभद्र और मलयगिरि दोनों ने की है किन्तु वे उन गाथाओं को प्रक्षिप्त मानते हैं। उन गाथाओं में स्पष्ट उल्लेख है कि यह श्यामाचार्य की रचना है। आचार्य मलयगिरि ने श्यामाचार्य के लिए 'भगवान' विशेषण का प्रयोग किया है। आर्य श्याम ये वाचक वंश के थे। वे पूर्वश्रुत में निष्णात थे। उन्होंने प्रज्ञापना की रचना में विशिष्ट कला प्रदर्शित की जिसके कारण अंग और उपांग में उन विषयों की चर्चा के लिए प्रज्ञापना देखने का सूचन किया है।
नन्दी की पट्टावली में सुधर्मा से लेकर क्रमश: आचार्य परम्परा के नाम दिये हैं, उसमें ११वाँ नाम 'वंदिमो हारियं य सामज्ज' इसमें आर्य श्याम का नाम आया है और उन्हें हारित गोत्र का बताया गया है। किन्तु प्रज्ञापना की प्रारंभिक प्रक्षिप्त गाथा में आर्य श्याम को वाचक वंश का बताया है और साथ ही २३वें पट्ट पर भी बताया है। आचार्य मलयगिरि ने भी उनको २३वें आचार्य परम्परा पर माना है किन्तु सुधर्मा से लेकर श्यामाचार्य तक उन्होंने नाम नहीं दिये हैं। पट्टावलियों के अध्ययन से यह परिज्ञात होता है कि कालकाचार्य नाम के तीन आचार्य थे। एक का वीर
१ शिक्षा समुच्चय, पृ०१०४-११२, २०२ २ (क) भगवान् आर्यश्यामोऽपि इत्थमेव सूत्र रचयति (टीका, पत्र ७२)
(ख) भगवान् आर्यश्यामः पठति (टीका, पत्र ४७) (ग) सर्वेषामपि प्रावनिकसूरीणां मतानि भगवान् आर्यश्याम उपदिष्टवान
(टीका, पत्र ३८५) (घ) भगवदार्यश्यामप्रतिपत्ती (टीका, पत्र ३८५)