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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य २२६ पर्यायाः" अतः यहाँ पद का अर्थ प्रकरण और अर्थाधिकार समझना चाहिए। रचना-शैली संपूर्ण ग्रंथ की रचना प्रश्नोत्तर के रूप में हुई है। प्रारंभ से सूत्र ८१ तक प्रश्नकर्ता या उत्तरदाता कौन है इस संबंध में कोई सूचना नहीं है, केवल प्रश्न व उत्तर हैं। इसके पश्चात् ८वें सूत्र में भगवान महावीर और गणघर गौतम का संवाद है । ८३ से ६२ सूत्र तक सामान्य प्रश्नोत्तर हैं । ३वें गौतम और महावीर के प्रश्नोत्तर हैं। उसके पश्चात् ९४वें से १४७ सूत्र तक सामान्य प्रश्नोत्तर हैं । तदनन्तर १४५ से २११ (अर्थात् संपूर्ण दूसरा पद ) तीसरे पद के २२५ से २७५ तक और ३२५, ३३०-३३३ व चौथे पद से लेकर शेष सभी पदों के सूत्र में गौतम गणधर और भगवान महावीर के प्रश्नोत्तर दिये हैं। सिर्फ उनके प्रारंभ, मध्य या अंत में आने वाली गाथा और १०८६ में वे प्रश्नोत्तर नहीं हैं । जिस प्रकार प्रारंभ में सम्पूर्ण ग्रन्थ की अधिकार गाथाएं आयी हैं । उसी प्रकार कितने ही पदों के प्रारम्भ में भी विषय निर्देशक गाथाएँ रचना में आई हैं। जैसे ३, १८, २०, २३ पदों के प्रारंभ और उपसंहार में । इसी प्रकार १० पद के अन्त में, ग्रंथ के मध्य में और जहाँ आवश्यकता हुई वहीं भी गाथाएँ दी गई हैं । संपूर्ण आगम का श्लोक प्रमाण ७८८७ है । इसमें प्रक्षिप्त गाथाओं को छोड़कर २३२ कुल गाथाएँ हैं और शेष गद्य है । इस आगम में जो संग्रहणी गाथाएं हैं उनके रचयिता कौन हैं यह कहना कठिन है। प्रज्ञापना के ३६ पदों में सर्वप्रथम पद में जीव के दो भेद - संसारी और सिद्ध बताये हैं। उसके बाद इन्द्रियों के क्रम के अनुसार एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक में सब संसारी जीवों का समावेश करके निरूपण किया है। यहाँ जीव के भेदों का नियामक तत्त्व इंद्रियों की क्रमशः वृद्धि बतलाया है। स्थानभेद से विचारणा की गई है। इसका क्रम भी दूसरे पद में जीवों की प्रथम पद की भाँति १ प्रज्ञापनाटीका, पत्र ६ २ सूत्रसमूहः प्रकरणम् -न्यायवार्तिक, पृ० १ ३ पण्णवणासुतं द्वितीय भाग (प्रकाशक श्री महावीर जैन विद्यालय) प्रस्तावना, पृ० १०-११
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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