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________________ अंगबाह्य आगम साहित्य २२७ देखा कि एक रंग-बिरंगा पंस्कोकिल सामने उपस्थित है। उस स्वप्न का फल था 'वे विविध ज्ञानमय द्वादशांग श्रुत की प्रज्ञापना करेंगे।' इसमें 'प्रज्ञापयति' और 'प्ररूपयति' इन क्रियाओं से यह स्पष्ट है कि भगवान का उपदेश प्रज्ञापना-प्ररूपणा है। उस उपदेश का आधार लेकर प्रस्तुत आगम की रचना होने से प्रस्तुत आगम का नाम प्रज्ञापना रखा हो ऐसा ज्ञात होता है। अंग साहित्य में यत्र-तत्र 'भगवान ने यह कहा' इस प्रकार जहाँ-जहाँ उल्लेख हुआ है वहाँ पर 'पन्नत्तं' शब्द का प्रयोग हुआ है। अत: श्यामाचार्य ने प्रज्ञापना शब्द का प्राधान्य होने से प्रस्तुत आगम का नाम प्रज्ञापना रखा हो। भगवतीसूत्र में आर्य स्कन्धक के प्रसंग में भगवान महावीर ने स्वयं कहा 'एवं खलु मए खंधया, चउम्बिहे लोए पण्णत्ते । इसी प्रकार आचारांग प्रभृति में भी अनेक स्थलों पर इस प्रकार के प्रयोग हुए हैं जो भगवान के उपदेश के लिए प्रज्ञापना शब्द का प्राधान्य प्रगट करते हैं। टीकाकार के अनुसार प्रस्तुत शब्द के प्रयोग में जो 'प्र' उपसर्ग है वह महावीर के उपदेश की विशेषता को सूचन करता है। जीव और अजीव आदि तत्त्वों का जो सूक्ष्म विश्लेषण भगवान महावीर ने किया है उतना सूक्ष्म वर्णन उस युग के अन्य किसी भी धर्माचार्य के उपदेश में दृष्टिगोचर नहीं होता है। प्रस्तुत आगम के भाषापद में 'पण्णवणी' एक भाषा का प्रकार बतलाया है। उसकी व्याख्या करते हुए आचार्य मलयगिरि लिखते हैं, जिस प्रकार से वस्तु व्यवस्थित हो उसी प्रकार उसका कथन जिस भाषा के द्वारा किया जाय वह भाषा 'प्रज्ञापनी' है। प्रज्ञापना का यह सामान्य अर्थ है। तात्पर्य यह है कि जिसमें कोई धार्मिक विधि-निषेध का प्रश्न नहीं है किन्तु सिर्फ वस्तु निरूपण जिससे होता हो वह प्रज्ञापनी भाषा है। बौद्ध पालि साहित्य में 'पञ्चती' नामक ग्रन्थ है जिसमें विविध प्रकार के पुद्गल अर्थात् पुरुष के अनेक प्रकार के भेदों का निरूपण है। उसमें पति यानी प्रज्ञप्ति और प्रज्ञापना दोनों के नाम का तात्पर्य एक सहश है। १ भगवती २०१४६० २ "प्रज्ञापनी-प्रज्ञाप्यतेऽर्थोऽनयेति प्रज्ञापनी" ३ यथावस्थितार्थाभिधानादियं प्रज्ञापनी ॥ -प्रशापना पत्र २४९ ----प्रज्ञापना पत्र २४९
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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