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________________ २२४ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा अल्पबहुत्व । निगोद दो प्रकार के हैं। निगोदाश्रय दो प्रकार के हैं, सूक्ष्म और बादर । निगोद की स्थिति, संस्थिति, अन्तरकाल और अल्पबहुत्व आदि का वर्णन है । षष्ठम जीव प्रतिपत्ति छठी सप्तविध जीव प्रतिपत्ति में संसारस्थ जीव सात प्रकार के बताये हैं । उन संसारी जीवों की स्थिति संस्थिति, अन्तरकाल और अल्पबहुत्व का वर्णन है । वे सात जीव इस प्रकार हैं-नैरयिक, तिर्यंच, तिर्यंचणी, मनुष्य, मानुषी, देव और देवी । सप्तम जीव प्रतिपत्ति सातवीं अष्टविध जीव प्रतिपत्ति में संसारी जीव ८ प्रकार के बताये हैं। प्रथमसमय नैरयिक, अप्रथमसमय नैरयिक, प्रथमसमय तियंच, मनुष्य और देव, इसी प्रकार अप्रथमसमय तिर्यंच, मनुष्य और देव का वर्णन है इन आठ प्रकार के संसारी जीवों की स्थिति संस्थितिकाल, अन्तरकाल और अल्पबहुत्व पर प्रकाश डाला है । अष्टम जीव प्रतिपत्ति आठवी नववध जीव प्रतिपत्ति में संसारी जीव के नौ प्रकार बताये हैं- पृथ्वीकायिक अपकायिक, तेउकायिक, वाउकायिक वनस्पतिकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व पंचेन्द्रिय । नौ प्रकार के जीवों की स्थिति, संस्थिति, अन्तरकाल, अल्पबहुत्व आदि का विवेचन किया गया है। नवम जीव प्रतिपत्ति नवीं दशविध जीव प्रतिपत्ति में संसारी जीवों के दश प्रकार बताये हैं- प्रथमसमय एकेन्द्रिय से प्रथमसमय पंचेन्द्रिय तक के पाँच और इसी प्रकार अप्रथमसमय एकेन्द्रिय से अप्रथमसमय पंचेन्द्रिय जीव तक के पाँच कुल मिलाकर दश प्रकार के जीवों की स्थिति, संस्थिति, अन्तरकाल और अल्पबहुत्व का सम्यक् निरूपण किया गया है। इसी प्रकार प्रस्तुत प्रतिपत्ति में जीवों के सिद्ध, असिद्ध, सेन्द्रिय, अनिद्रिय, ज्ञानी, अज्ञानी, आहारक, अनाहारक, भाषक, अभाषक, सम्यग्दृष्टि. मिथ्यादृष्टि, परित, अपरित, पर्याप्तक, अपर्याप्तक, सूक्ष्म, बादर, संज्ञी, असंज्ञी, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक भेद कहे हैं तथा योग, वेद, दर्शन, संयत, असंयत, कषाय, ज्ञान, शरीर, काय, लेश्या, योनि, इन्द्रिय आदि की अपेक्षा से वर्णन किया गया है ।
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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