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२२२ जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा पुंडरीक देवों की स्थिति, पुष्करवरद्वीप में चन्द्र, सूर्य, महाग्रह, नक्षत्र तारा आदि का वर्णन है।
मानुषोत्तर पर्वत बीच में आ जाने से पूष्करवरद्वीप के दो विभाग हो गये हैं। समय क्षेत्र का आयाम, विष्कंभ, परिधि, मनुष्य क्षेत्र के नाम का कारण, सूर्य, चन्द्र, महाग्रह, नक्षत्र, तारा आदि का वर्णन है।।
मनुष्यलोक और उसके बाहर ताराओं की गति आदि, मानुषोत्तर पर्वत की ऊँचाई, पर्वत के नाम का कारण, लोक सीमा के अनेक विकल्प, मनुष्यक्षेत्र में चन्द्रादि ज्योतिषी देवों की मण्डलाकार गति, इन्द्र के अभाव में सामानिक देवों द्वारा शासन, इन्द्र का विरहकाल, पुष्करोदधि का संस्थान, चक्रवाल, विष्कम, परिधि, चार द्वार, उनका अन्तर, द्वीप और समुद्र के जीवों की परस्पर उत्पत्ति आदि पर चिन्तन किया है।
अंत में स्वयंभूरमण द्वीप और समुद्र का वर्णन है। लवणसमुद्र, कालोद समुद्र, पुष्करोद, वरुणोद, क्षीरोद, घृतोद, क्षोतोद तथा शेष समुद्र आदि के पानी के आस्वाद का वर्णन है। ये प्रत्येक रस वाले चार-चार समुद्र, उदगरस वाले तीन समुद्र, बहुत मच्छ-कच्छ वाले तीन समुद्र, शेष समुद्र अल्प मच्छ वाले हैं। समुद्रों के मत्स्यों की कुलकोटि, अवगाहना, आदि का वर्णन है। देवों की दिव्य गति, बाह्य पुद्गलों के ग्रहण से ही विकुर्वणा, देव के वैक्रिय शरीर को छद्मस्थ नहीं देख सकता, बालक का छेदनभेदन किये बिना बालक को ह्रस्व, दीर्घ करने का सामर्थ्य देव में होता है, आदि का वर्णन है।
चन्द्र, सूर्यों के नीचे, मध्य और ऊपर रहने वाले ताराओं का वर्णन, प्रत्येक चन्द्र, सूर्य के परिवार का परिमाण, जम्बूद्वीप के मेरु से ज्योतिषी देवों की गति का अन्तर, लोकान्त से ज्योतिषी देवों की गति क्षेत्र का अन्तर, रत्नप्रभा के ऊपरी भाग से ताराओं का, सूर्य-विमान का, चन्द्रविमान का और सबसे ऊपर के तारे के विमान का अन्तर यहाँ बताया गया है।
इसी प्रकार अधोवर्ती तारे से सूर्य, चन्द्र और सर्वोपरि तारे का अन्तर, जम्बुद्वीप में सर्वाभ्यन्तर, सर्वबाह्य, सर्वोपरि, सर्वअधो गति करने वाले नक्षत्रों का वर्णन, चन्द्रविमान, यावत् ताराविमान का विष्कंभ, परिधि, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्रों के विमानों को परिवहन करने वाले देवों की