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________________ २२० जैन आगम साहित्य : मनन और मीमांसा उपपात सभा का वर्णन, विजयदेव की उत्पत्ति, पर्याप्ति, मानसिक संकल्प, आदि का वर्णन किया गया है। विजयदेव की स्थिति और उनके सामानिक देवों की स्थिति, जम्बूद्वीप के विजय, वैजयन्त, जयंत और अपराजित द्वारों का वर्णन किया गया है। जम्बूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर, जम्बूद्वीप से लवणसमुद्र का और लवणसमुद्र से जम्बूद्वीप का स्पर्श । जम्बूद्वीप के और लवणसमुद्र के जीवों की उत्पत्ति बताई गई है। जम्बूद्वीप में उत्तरकुरु का स्थान, संस्थान और विष्कंभ, जीवा और वक्षस्कार पर्वत का स्पर्श, धनुपृष्ठ की परिधि, उत्तरकुरुक्षेत्र के मनुष्यों की ऊँचाई, पसलियाँ, आहारेच्छा, काल, स्थिति और शिशुपालन काल । उत्तरकुरु के दो यमकपर्वत हैं। उनकी ऊंचाई, उद्वेध, मूल, मध्य और ऊपरी भाग का आयाम, विष्कंभ, परिधि, उन पर्वतों पर प्रासाद और उनकी ऊँचाई, यमक नाम का कारण दो यमक देव हैं। यमक पर्वत नित्य हैं, यमक देवों की राजधानी का स्थान, आदि का वर्णन है । उत्तरकुरु में नीलवंतद्रह का स्थान, आयाम, विष्कंभ और उद्वेध, पद्मकमल का आयाम, विष्कंभ, परिधि, बाहुल्य, ऊँचाई और सर्वोपरिभाग, इसी तरह पद्मकणिका, भवन, द्वार; मणिपीठिका, १०८ कमल, कणिकाएँ, पद्मपरिवार आदि के आयाम, विष्कंभ, परिधि का वर्णन है। कंचनग पर्वतों का स्थान, प्रासाद नाम का कारण, कंचनगदेव और उसकी राजधानी, उत्तरकुरुद्रह का स्थान, चंद्रद्रह, ऐरावणद्रह, माल्यवतद्रह, जम्बूपीठ का स्थान, मणिपीठिका, जम्बू-सुदर्शन वृक्ष की ऊँचाई, आयाम, विष्कंभ आदि का वर्णन किया गया है। जम्बू-सुदर्शन की शाखाएँ, उन पर भवन, द्वार, उपरिभाग में सिद्धायतन के द्वारों की ऊंचाई, विष्कम्भ आदि । पार्श्ववर्ती अन्य जम्बू- सुदर्शनों की ऊँचाई, अनाधृत देव और उसका परिवार, चारों ओर के वनखण्ड, प्रत्येक वनखण्ड में भवन, नन्दा पुष्करणियों, उनके मध्य प्रासाद, उनके नाम एक महान कूट, उसकी ऊँचाई, आयाम, विष्कम्भ आदि का वर्णन है। जम्बु सुदर्शन वृक्ष पर अष्टमंगल, उसके १२ नाम, उसके नाम का कारण, अनावृत देव की स्थिति, राजधानी का स्थान का वर्णन है । जम्बूद्वीप नाम की नित्यता, उसमें चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, महाग्रह, तारागण आदि की संख्या आदि का वर्णन है । लवणसमुद्र का संस्थान, उसका चक्रवाल, विष्कंभ, परिधि, पद्मवेदिका की ऊँचाई और वनखंड, लवणसमुद्र के द्वारों का अन्तर,
SR No.091016
Book TitleJain Agam Sahitya Manan aur Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1977
Total Pages796
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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