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अंगबाह्य आगम साहित्य २१७ हरित, औषधि, जलरुह, कुहण आदि और साधारण शरीर वनस्पतिकाय के अनेक प्रकार हैं।
त्रस जीव के तेजस्काय, वायुकाय और औदारिक श्रस ये तीन भेद किये हैं । तेजस्काय और वायुकाय के सूक्ष्म और बादर और फिर बादर के अनेक भेद बताये हैं । औदारिक त्रस द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय रूप से चार प्रकार होते हैं। पंचेन्द्रिय के नारक, तियंच, मनुष्य
और देव ये भेद किये हैं। नरक के रत्नप्रभादि सात भेद बताये हैं। तिर्यंच के जलचर, स्थलचर और नभचर ये तीन भेद करके फिर एक-एक के अनेक भेद किये हैं। मनुष्य के संमूच्छिम और गर्भोत्पन्न ये दो भेद हैं और देव के भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक ये चार भेद हैं। द्वितीय प्रतिपत्ति
द्वितीय प्रतिपत्ति में संसारी जीव के तीन प्रकार बताये हैं-स्त्री, पुरुष और नपुंसक । स्त्रियाँ तीन प्रकार की हैं-तिर्यंचणी, मानुषी और देवी। फिर उनके अनेक भेद किये हैं और उनकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति पर प्रकाश डाला है। फिर पुरुष के भी तीन भेद किये हैं-तिर्यंच, मनुष्य और देव । स्त्री के समान पुरुष के भी अनेक भेद बताकर उनकी जघन्य व उत्कृष्ट स्थिति पर प्रकाश डाला है । इसके बाद नपुंसक के तीन प्रकार बताये हैं-नारक, तिथंच और मनुष्य और उनके भी अनेक प्रकार बताकर उनका जघन्य-उत्कृष्ट अन्तरकाल भी बताया है। नपुंसक वेद को ' किसी महानगरी के प्रज्वलित होने के समान उग्र दाहकारी बताया है। तृतीय प्रतिपत्ति
तृतीय प्रतिपत्ति में नरक की सात पृथ्वियों के नाम, गोत्र, पहली नरक रत्नप्रभा पृथ्वी के ३ काण्ड, शर्कराप्रभा यावत् तमस्तमाप्रभा का एक-एक प्रकार बताया है। सात नरकों के नारकावास, सात नरकों के नीचे घनोदधि, धनवात, तनुवात, अवकाशान्तर, रत्नप्रभा के काण्ड का बाहुल्य, यावत् तमस्तमा के बाहुल्य आदि, सात नरकों और उनके अवकाशान्तरों में पुद्गल द्रव्यों की व्यापक स्थिति, सात नरकों से चारों दिशाओं में लोकान्त का अन्तर, सात नरकों के संस्थान, सात नरकों में सर्व जीवों के उत्पन्न होने, निकलने आदि के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर, सात नरकों के वर्ण, गंध, रस, स्पर्शादि, चार गतियों की अपेक्षा से गति और आगति,